नीतिशास्त्र का आलोचनात्मक परिचय | Neetisastra Ka Alochnatamak Parichay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नीठिशास्र का श्र्थ ६
जिम चुम मृत्य मानने का अर्थ उस बस्तु को किसी न किसी
दृष्टि से भेरस्कर समभना दै । श्रतप्व नैतिक स्थिति की उपयुक्त ब्रात को
दोहराते हुए, हम यह बह सकते हैं कि कुछ वस्तुओं को भेयस्कर मानना
चाहिए या, भेय शब्द के सापेक्षिक होने से, कुछ वस्लुश्रों को अन्य
चलछुओं से अच्छा मानना चादिए.। क़्िंदुक को खसे अब्रच्छा मानना
ख को क से बुग मानना है। इसका अर्थ यद है कि बुछ वम्तुएँ श्रन्य
बलुओ से बुरी होती हैं। अतएब ठुलनात्मकू दृष्टि से श्रेयश्कर और
अश्रेयस्वर में मेद कर सकने की योग्यता ही नैतिकता की पहली ध्यावश्यक
शर्ते है। क्या भ्रेय्तर है और क्या नहीं है ? यह दूसरा ही सवाल है।
यहाँ तो केवल इसी बात पर जोर दिया गया है कि जो व्यक्ति कुछ
वलां को श्रम्थ वस्तुओं से ग्धिक्र महत्ता नहीं देता उसके लिए नैतिक
समस्या हो ही नहीं सकती | ( ऐसे मनुष्य के सामने नैतिक समस्याएँ हो
भी सक्ती हं इते सममना ज्ञा कठिन दै ) । श्रतप्व मैतिक समस्या के
हो सकने को पहली शर्त किसी न किसी मूल्य बी उपस्थिति को मानना है।
मैतिक समस्या कौ यह प्राथमिक विशेषता नीतिशासत्र को आदर्शात्मक
( 0०77०४४४ ) विज्ञान बना देती दै। नोतिशाश्र अनुभववादी विशानों
के श्र्थ में विज्ञान नहीं दै और उसकी चिंतन प्रणाली भी सबंधा अलग
है। नीतिशास्र को विज्ञान शब्द के विस्तृत अर्थ में द्वी विज्ञान कद्दा जा
सकता है क्योकि उसकी विषय सामग्री को व्यवस्थित किया जा सकता है
और कुछ निद्धान्तों की खोज भी की जा सकती है। भीतिक-विज्ञान,
मनोविज्ञान, अर्थशात्र आदि में तस्य-सकलन पर ही जोर दिया जाता है,
किंतु नीतिशाश्न में तथ्यों को गीण समझता जाता है और उन्हे वहीं तक
लिया जाता दै जहाँ तक उन पर नैतिक मूल्य लागू दोते हैं श्रीर उनका
मूल्याकन হী सकता है। भारत गर्म देश है, यह एक दब्य है; वहाँ के
लोग गरीब हैं, হু শী तथ्य है। दोनों ही बातें तथ्य हैं. कितु हम उनके
मूल्यॉकन में भेद करते हैं। मूल्यांकन के यही भेद, यद्दी आदर्शात्मक
भेद यो नैतिक स्थिति की नींव हैं ।
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