ब्रह्मसिद्धान्त [पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध] | Brahma Siddhanta [Purvarddha Aur Uttararddha]

Brahma Siddhanta [Purvarddha Aur Uttararddha] by माणेकबाई दादाभाई जे. दरोगा - Manekabai Dadabhai J. Daroga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बद्मसिद्धात, ११ कार्यमें इस पहाडी प्रदेशमें अनेक प्रशस्ति प्राप्त की और जो इतिहाप्त लिखनेमें “और समय जाननेमें सहायक हुई. इस प्रकार करते हुए उत्तरोत्तर पदवी बढते बढते आखिर ज्युडीशीयल न्यायाधीश (नायब हाकीम) का पद प्राप्त कौया था, उप्त जिल्लामें मियाणेकी जाति ज्यादा होने परभी स्वामीनीके समयमें चोरी होना भंध हे। गया था, कयौ करि पुराणे कायदेसे दंड नहिं करके केदकी दिक्षा करते ये.“ ऐसे कार्य करते हुए गृहस्थाश्रमके सुख दुःखका अनुभवी कर रदे थे, ईश्वर स्मरण और संध्या बंदनमें स्वामीमीका प्यार था, काई केई समय पर हिंदी और उ्दुमें काव्यमी करते थे, व्यवहार विद्याके साथ स्वामीमीने प्रचलित विद्याकामी मन्थन कोया था. असेकि ज्योतिष, रमल, केरल, फर्‌, भत्र, नत्र कीमीया वेका जम्याप् कीया था.लेकीन इन सब विद्याओंमें कुछ ठीक सार या उपयोग है ऐसा स्वामीमीके दीलमें नहि आया, सायन्स शून्य हानेके सबबसे भावनाके विना उनका दुसरा काई सत्य मूल्य नहीं देखनेमें आया. मात्र ज्यातिपमें, गणितमें सत्य माडूम हुआ. इस मन्थनका परिश्रममें वामी जान ठीया कि विश्वास और मानसिक शक्ति बहत काम करते ह, क्याफा- (सामुद्रिक-मस्तिप्क विद्या-अर्थात्‌ मनुप्यक्ा अंग परसे उनकी प्रकृति-येग्यता जाननेकी विद्या) स्वरोदय ( शरीररक्षक विद्या-वंर्तमान भविष्यका अनुमान ) योग . पदतिसे चक्र साधन, तेनस्‌ विद्या, ( मेस्मेरीझम ) बंगेरे विधाकामी अम्यास करके येोग्यताकी परीक्षा की थी. इन विद्याओकरे छथि जप्ता लेकमें कहा जाता है वेसी ख़ुबी देखनेमें नहि आई तथापि छख्टि नियमातुकूर त्वोका कुछ मूढ इस विद्यामें है. और कितनेक अंश्म लेक्ापयेगी है, ऐसा प्रतीत हुआ. सूक्ष्म सपछिका स्परूपभी कुछ समझनेमें आया. थोडीसी वैश्य विद्याी जान लिया. इन सब विद्याओंकी परीक्षा स्वामीजीने गृहस्थाश्रममें की थी. स्वामीनीका सन्‍्यास जीवन, जब स्वामीजीकी वय १४ वर्षकी थी तत्र उनके ९० वर्षकी पित्तामही गुजर गये, इस मृत्युकी परीक्षाने उनकी मनेभूमिमें पेराग्यका बीमरेपण कीया. उनके पिताजी साधु संग करते थे जिस लिये उनके आंतरिक विचांरेंमें उत्तेनन मिलता था, उनका पितामहमी युवावस्थामें साधु हे! गये थे, जिसका वराग्यवेधक वाक्यों का वारंवार मनन होते थे. उनका ज्ञातिवंधु रणजित भागव जे वाया चरणदास” नामसे महम्मदश्ाह्‌ नादीर्शाह बाद्हिि समयमे सिद्ध जानयोगी भक्त हे गये ये, इनका बचनेका अभ्यास ख्वामीजीनिकीया था. जच स्वामीजी परदेशमें नीकरीमें था, तब उनका




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