दास्ताने अवध | Dastane Awadh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डतिहास की गवाही इतिहास की काल-पतें एक-दूसरे पर कुछ इस तरह चढ़ती जाती हैं कि हर अगला दौर पिछले दौर पर कुछ न कुछ परदा डालता जाता है। लखनवी इतिहास के साथ भी ऐसा ही हुआ। लखनऊ के इतिहास के नाम पर नवाबी के चाँद-तारे कुछ ऐसे जगमगा उठते हैं कि बस उसके पीछे के जमाने को आँख उठाकर देख पाना मुश्किल हो जाता है। लखौड़ी की वो लखौड़ी चुने की इमारतें जो इण्डोसिरेसेनिक अदा में मुस्करा रही है यहाँ की सिगनेचर बिल्डिंग बनी हुई हैं अगर हम इनके पीछे कुछ ढूँढ़ने की कोशिश करें तो शेखज्ञादों का लखनऊ हमें दिल्‍ली सल्तनत की कुछ खिचडी इमारतों में से झाँकता हुआ नजर आएगा और इन मध्यकालीन इमारतों में गुप्तकालीन हिन्दू सभ्यता के नगीने जड़े हुए मिलेंगे । दिल्‍ली में गुलाम वंश की स्थापना काल से मुग़लों की दिल्‍ली उजड़ने तक लखनऊ शेखों का लखनऊ रहा । इन छः सदियों में सरजमीने अवध में आफ़तों की वो-वो आँघियाँ आइईं कि हज़ारों बरस पहले वाली सभ्यता पर झाड़_ फिर गई । नतीजा ये हुआ कि वो चकनाचूर हिन्द सभ्यता या तो तत्कालीन मुस्लिम इसारतों में तक्सीम हो गई या फिर लक्ष्मण टीला किला मुहम्मदी नगर और दादूपुर की टैकरी में समाधिस्थ होकर रह गई और यही कारण है कि लखनऊ तथा उसके आस-पास के मन्दिरों में खण्डित मूर्तियों के ढेर लगे हुए हैं । लखनऊ के शेख़ज़ादे कच्चे मकानों में रहते थे और उनके सुफ़ी आलिस नीम के नीचे डेरा डाल देते थे। इसलिए लखनऊ में शेख पीरियड की इमारतों के नाम पर सिफं मस्जिदें दरगाहें या मक़बरे दो हैं। दिल्‍ली सल्तनत के खिलजी तुग़लक लोदी और फिर आलमगीरी हुकूमत में बुतशिकती के हौसले अच्छी तरह पुरे किये गये और देश के दूसरे महत्त्वपूर्ण




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