हिंदी विश्वकोश [सप्तदश भाग] | Hindi Vishvakosh [Part 17]
श्रेणी : पत्रिका / Magazine
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
54 MB
कुल पष्ठ :
770
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मश्यप्रभतूरि-मलयालि
मलयप्रमसूरि-एक जैनसूरि। इन्होंने मानतुड्भसूरिक्रत
सिद्धशयन्तकी टीका चिली है । उक्त दीका ११६०
विक्रम संवत स्वी ग थी।
परयमूमूत् ( स'० पुऽ ) मखयपवेत ।
प्रढयभूति (स० त्लो०) हिमाहुय-पर्वतस्थ स्थानमेद, हिम्ता-
ठयक एक प्रदेशका त्ताम ।
मलयराज्ष-एक प्राचीत कवि | ।
प्रठूयवाद ( स'० पु० ) मलयानिठ, मछय पचतकी ओरसे ৷
अनिघालो वायु । |
मरुयवासिनी ( से स्रो७ ) दुर्गा । ( हरिवश १०२४५ ' |
महया (स० स््री०) मल कयन-टाप्। १ लिवूता, निसोथ |
२ सोमराजी | ३ चकुधी |
प्रलयागिरो ( ० पु9 ) मलयगिरि देखो ।
मररयाचल म्ब प्रदेशके सह्याद्रि-पदेतवा प्क अ'शए ।
स्कन्दपुराणके मलेयाचल-खर्डमं यहाके देवतोर्थादिका
विषय सविस्तार लिखा है |
मलयाचल ( स* पु० ) प्रतदश्वासावचलश्चेति | मलय
पचत |
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“ुतरागनागकखीरृतो पके
तत्मित् रहे कमहरेणबरुणे शयीत् )
यत्राहतानिल्विकम्पितपृप्पदाम्नि
हेमन्तविन्ध्यहिमतरन्मलयाचलानाम् ॥
(গর ওহ ४७ अ )
मलयाद्रि ( स'० पु० ) मल्यपव॑त |
महयाननद्सरखती--एक विख्यात परिडित | आप णङ्कर
चायके म्तपोषक थे और आायायेरुपप्रें उक मतका प्रचार
छर गये हैं ।
मानिक ( स ५ पुण ) प्रसयस्य अनिलः । १ वसेन्त-
लीग वाथ, वसन्तकालो हवा । पर्याय -चासन्त ।
त एव रमिः कालः स एव मलयानिद |
বম किन्तु मनोऽनयदिव इत ॥7
( गाहित्वदर्पण २११२६ )
२ छुगन्धित वायु । ३ महयपरंतको ओरसे आमेवालो
वायु, दक्षिणको बायु।
मलयालम--भारतवर्पके दृ्षिण परिचि अवस्थित एक
देश । वह चन्द्रणिरिसे कुमोरिका अन्तरीप অন্ধ জি
है। इसे केरल भी कहते ह । भख देखा |
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२३
हिग्दूशाखमें लिखा है, कि परशुरामने समुद्रसे इस
स्थानका उद्धर क्रिया था! पछि मिन्न मित्र समयमें
मिनन भिन्न राज्नाने उस परर अधिक्रार जमाया | शङी-
कटके अधिपति, कानपुरकी वेगम, हिवाड्ोरके राजा,
पुत्त गीज्, ओलन्दाज, फरासी और टोपू না
ये सब क्रमशः केरलके अधि/वर हुए थे | वत्तेमान समय-
में यह एक एकमात बृ्थि-गर्षमेए्टके अधीन है।
पयार प्रायः समो स्थान पर्वतमालासे परिपृण है।
वीच बोचमे उपत्यका भो देखो जावो है। तामिल भाषा-
में मलय शब्दका अर्थ पच्चत और अलम शब्दका अर्थ
उपत्यका है। इसी कारण इसका ताम्रिल नापर भया
लम् हुआ है। इसे केररू भो कहते हैं । केरल नाम-
की उत्पत्तिके सललन्धमे कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता,
पर कोई कोई 'केरम' अर्थात् नारिकेल (नारियल) शब्दसे
केरल नाकौ उत्पत्ति वतरते है । फिर किसी किसी
का कहना है, कि केरठ सामक यहां एक प्रवरू राजा
राज्य करने थे । शायद् उन्हीके नााुसार उस प्रदेशका
नाम केरल रखा गया होगा |
यहाक्े प्रधान अधिधासो नायर जातिके है। थे छोग
मलयाल श्र नामसे भी प्रसिद्ध ই | प्रतयालम हन-
का सापा हैं। किन्तु तामिल भाषाका भी प्रचार देखा
ज्ञाता ह। भारतके अन्यान्य प्रदेशेसे भा आय और
अनाये जातिके नाना सम्प्रदाय इस स्थानमें आ कर वस
गये हैं। ये छाग साधारणतः कवाड़ो, गुजराती, हिन्दु,
स्तानी आदिमें वोलचाल करते हैं एतड्धिन्त यहा मापिला
नाप्त पक श्रणोका मुसलमान भो रहता है | भरवदेशसे
जिन सव मुसरमानोंने पहछे महवारमे उपनिवेश वसाया
था, उन्हीं औरस और पलवारों रमणीके गर्मसे जो
सन्तान उत्पन्न हर् घं 'मापिस्छा কভার | माका
सथं प्रत्ता भौर पिकः अर्थं पुत्र ट, अतः मापिरछ
का अथं माका पुत हेता है |
माविद्ठा जाति वहुत वलिष्ठ और साहसो है।
मलयालि-दाक्षिणात्यधासो एक पहाडो जाति | खेती-
चारो और पशुपालन ही इनको एकमात्र उपज्ोषिका है।
वहुतेरे शेवारय पहाइके उपत्यकास्थित ्रामोमे रहते हैं।
छुना जाता है, कि थे छोग ११वों অহী कचचिोपुरसे यहां
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