साहित्य सौरभ [तृतीय भाग] | Sahitya Saurabh [Triteeya Bhag]
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ७ ]
ये कपा सकती कभी जिसके कठेजेको नदीं ।
भूकर मी वह नहीं नाकाम रहता है कीं ।॥४।४
चिचिद्धाती धूपको जो चाद्नी देवे वना ।
काम पड़ने पर कर जो शेरका भी सामना ॥.
जो कि हँस हँसके चबा ठेते है छो्ेका चना।
है कठिन कुछ भी न्दी? जिनके है जीमे यह ठना ॥
कोस कितने दी चरे पर वे कभी थक्रते नदी ।
कौनसी दै गौठ जिसको खो वे सकते नही ॥५॥
कामको आरम्भ करके তাঁ नहीं जो छोड़ते ~
सामना करके नदीं जो भूलकर मुंह मोड़ते॥
जो गगनके फूछ घातोंसे ब्रथा नहिं
सम्पदा मनसे करोड़ोकी नहीं जो जोडते॥
बन गया होरा, उन्हींके दाथसे है कारबन।
काँचको करके दिखा देते है वे उज्ज्वल रतन ॥६॥
प्ै्तोको काठकर सङ्के वना देते है
सैकड़ों मरुमूमिमे नदियां वदा देते दैवे॥
বালি जख-राशिके वेड़ा चला देते हैं
जंगलोंमे भी मद्दा-मंगल रचा देते हैवे।
भेद नभ-तकका उन्होंने दे बहुत बतछा दिया।
है उन्होंने दी निकाली वारकी सारी क्रिया |
कार्य थछको वे कमो नहिं पूछते “बढ दे कहाँ”
कर दिखते दै असम्भवको बही सम्भव यदा ॥
उलमनें आकर उन्हें पड़ती है जितनी दी
दिखाते दे नया उत्साह उतना ही वहाँ।॥
ढाल देते है विरोधी सैकड़ों दी अड़चनें।
वे जगहसे काम अपना ठोक करके ही ढकू॥ ८॥
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