जैन सिद्धांत दीपिका | Jain Siddhant Deepika
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
426
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ( संस्छत )
प्रस्तुतग्रन्थर॒त्नस्थाभिधघानमस्ति. श्रीजनसिद्धान्तददी पिका । विरूसत्ति
कृतिरिय परमाहंतमतप्रभावकदाशं निक्मूधन्यता किकशि रो रत्न सिद्धान्तरह स्य-
वेदिश्ची मत्तठसीरामाचायं वराणाम् 1 श्रीमदाचार्येवर्याणा प्रकाण्डपाण्डित्यस्य
परिचय दातु नाह स्पल्पचेता कथमप्यवीक्षे 1 तस्य परिचय तु दास्यति
स्वयमेव शास्त्रश्री रपरामर्शोऽपि सुनरामध्ययनरसिकेभ्य ।
किञ्च न च स्वतन्त्र विचाराभिन्यञ्जनमिव सर्व॑वेदिना विचारप्रतिनिधित्व
सुकरम् । तव्राधिवसति सुमहदुत्तरदायित्वम् । `
ग्रन्थनिर्माणप्रयोजन खलु जैनसिद्धान्तनिरूपितत त्त्वप्रकाशेन भानाविदव-
वततिरहृश्योद्चाटनपुरस्सरमनेकेषामिन्द्रिय।तोततविपयाणा निर्णंयीकरण श्ुखला-
चद्धर्पेण द्रव्यतत्त्वाचारविधेग्धंवस्थापनन्व । कि खक् साम्प्रत वंज्ञानिको-
न्नतिचमत्कृते वंज्ञानिकयुगेऽस्योपयोमित्वम् ? किञ्चनिन जीवनस्य सम्बन्धो
येन जना्वक्षुरगोचरपदायंप्रपञ्चजटिक्ेऽस्मिन् गहनातिगदने शास्त गहने
प्रवेष्टु पादमप्यु च्चाल्येयु ?
जडप्रवानस्याधूनिकयुगस्य एतादृशा विचारभ्रवाहा स्फुटमेकार्णंकीमूता
विलोक्यन्ते । परञ्च विचारपेशख्या मनौपया निनिमेष नयनपुरमनुसन्धाय
साक्षरा क्षण निरीक्षेरस्तदानी किमेतादृशान् फत्गृप्रायान् प्रश्नान् सरसरसना-
प्राङ्खणे प्रीणयेयुः ? नहि, कदापि नहि ।
इन्त जडपदाथनिमिकाविकारेऽमृष्मिन् युगे समज्जीवेयुरेतादृशा अनुयु-
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