भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन और हिन्दी साहित्य | Bhartiy Rashtriy Andolan Aur Hindi Sahity

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Bhartiy Rashtriy Andolan Aur Hindi Sahity by शैलेश कुमार उपाध्याय - Shailesh Kumar Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'घर और बाहर' परिवार और राष्ट्र के प्रति जा कर्तब्य है उसकी कथा हे। इस सारी कथा में हिसा की अनुपयागिता को रेखाकित किया गया ह। चार अध्याय' मूलत एक क्रान्तिकारी बन्धुवान्धव उपाध्याय के जीवन कथा पर आधारित एक उपन्यास हे। बन्धुवान्धव उपाध्याय ने धर्मान्तरण करके ईसाई धर्म स्वीकार किया किन्तु वेदान्त से अत्यधिक प्रभावित थे, वे क्रान्तिकारी थे, रवीन्द्रनाथ से उनका व्यक्तिगत सम्बन्ध था। १६३४ मे “चार अध्याय' का प्रकाशन हुआ उसके प्रथम सस्करण कौ भूमिका मे रवीन्द्रनाथ ने इस उपन्यास के उद्देश्य की चर्चा की - हिसा की व्यर्थता । इस उपन्यास की कड़ी प्रतिक्रिया हुई बाद के सस्करणे मे भूमिका हटा दी गई । चार अध्याय राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए क्रान्तिकारी मार्ग को स्वीकार नही करता। रवीन्द्रनाथ ठाकुर जिस राष्ट्रवाद के समर्थक थे वह सकीर्ण और उग्रराष्ट्रवाद नही था, युद्ध लोलुप नही था, विस्तारवादी नही था, उपनिवेश नही बनाना चाहता था, साम्राज्यवाद स्थापित नही करना चाहता था। उस राष्ट्रवाद का आधार वैदिक ऋषि की उदार दृष्टि थी सृजनात्मक साहित्य के अतिरिक्त अपने व्याख्यानो के सग्रह जो राष्ट्रवाद” के शीर्षक से प्रकाशित हुआ है उसमे भी रवीन्द्रनाथ ने राष्ट्रवादी अहकार पर प्रहार किया है। वे यह मानते थे कि राष्ट्र व्यापक मानव परिवार के अग है। उनके लिए (रवीन्द्रनाथ) केवल एक ही इतिहास है मनुष्य का इतिहास और जितने भी राष्ट्रीय इतिहास है इस व्यापक इतिहास के अध्याय मात्र है।* उर्दू साहित्य भी राष्ट्रवादी चेतना से अछूता नही है। यह सच है कि मुस्लिम समाज पर अलगाव वादी राजनीति का प्रभाव पडा किन्तु इसने राष्ट्रवादी मुस्लिम साहित्यकार और प्रगतिशील मुस्लिम साहित्यकारो को प्रभावित नही किया। अल्लामा इकबाल की प्रसिद्ध रचना 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' भारतीय राष्ट्रवाद से जुडा हुआ है। भले ही उन्होने आगे चलकर अलगाववादी राजनीति के प्रभाव मे आकर 'मिल्ली तराना' लिखा। इसके अतिरिक्त जोश मलीहाबादी मे प्रचुरमात्रा मे अग्रेजो का विरोध और राष्ट्रवाद की चेतना दीख पडती है, उनकी नज्मे जब्त भी हुई है | हिन्दी साहित्य ओर राष्ट्रवाद मुद्रण, पूँजीवाद के विकास तथा राष्ट्रवाद के अर्न्तसम्बन्ध पर टिप्पणी करते हुए 'बेनेडिक्ट एडरसन' लिखते हैं, ““पूजीवाद तथा मुद्रण प्रौद्योगिकी ने मानव भाषाओ की विवधता पर केन्द्रण करके नये रूप मे परिकल्पित समुदायो की सभावना को जन्म दिया ।* आधुनिक भारत मे यह प्रक्रिया गतिशील रूप मे बगाल से आरम्भ हुई जहा ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा यूरोपीय धर्म प्रचारको की पहल पर अठारहवी शताब्दी मे बगला मे पुस्तको का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ । उन्नीसवी शताब्दी के मध्य तक मैकाले की नीति के फलस्वरूप फारसी का अग्रेजी दारा विस्थापन हुआ तथा क्षेत्रीय भाषा के रूपमे 11




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