हिन्दी उपन्यास साहित्य का शास्त्रीय विवेचन | Hindi Upanyas Sahitya Ka Shashtriya Vivechan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Upanyas Sahitya Ka Shashtriya Vivechan by डॉ॰ श्री नारायण अग्निहोत्री - Do. Shri Narayan Agnihotri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ॰ श्री नारायण अग्निहोत्री - Do. Shri Narayan Agnihotri

Add Infomation AboutDo. Shri Narayan Agnihotri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हिन्दी शब्द के विभिन्न अर्थे आधुनिक्र काल में प्रयुक्त होने वाला हिन्दी शब्द अपनी विभिन्न ऐतिहासिक परम्पराओं को लिए हुए चल रहा है। जहाँ तक भारत की भाषाओं---संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश का सम्बन्ध है, यह शब्द इनमें से किसी भी भाषा में प्रयुक्त नहीं हुआ है । कालकाचार्य की कथा ( जैन ग्रन्थ } मे हिन्दग्‌ शब्द उपलन्ध होता है ।! भारतीय फारसी विद्वानों ने हिन्दी श्रथवा हिन्दवी का प्रयोग हिन्द की भाषा के रूप में किया है। भारत की प्राचीनतम भाषाश्रों में हिन्दी शब्द का प्रयोग भले ही न हुआ हो पर इतना स्पष्ट है कि आठवीं शताब्दी तक आते-श्राते ईरानियों द्वारा शब्द का प्रयोग होने लगा था। ईरानियों की सबसे अधिक प्राचीन धर्म पुस्तक आवेस्ता' है इसमें हेन्द' हिन्द तथा 'हफ्तहिन्दवा शब्द पाये जाते हैं । प्राचीन पहलवी में 'हिन्द' 'हिन्दुक' और हिन्दुश्‌! शब्द मिलते हैं। मध्यकालीन ईरानी काल में विशेषण प्रत्यय ईक जोड़ कर हिन्द ~-ईक्‌ = हिन्दीक' और 'हिन्दीग' शब्द बना। कालान्तर में अन्तिम व्यंजन का लोप हो गया और 'हिन्दी' शब्द 'हिन्द' के विशेषण के रूप में प्रचलित हो गया । इस प्रकार 'हिन्दी' शब्द का मूल रूप हिन्द है ।* ऐसा प्रतीत होता है कि भारतेतर देशों यथा मिस्र, अरब, सीरिया आदि में हिन्दी! अथवा हिन्दी शब्द ईरानी साहित्य के माध्यम से ही प्रविष्ट हुआ है। वहाँ पर हिन्दी शब्द का प्रयोग देश का अथवा देश की बनी हुई वस्तु का ज्ञान कराने के लिए होता रहता है। आज भी हिन्दी शब्द से भारतवर्ष ( हिन्दुस्तान ) में रहने वालों का बोध होता है यथा-'हिन्दी रूसी भाई-भाई ।' ॐ সপ পপ পাপ পাশ ५१५ १ 'स्रिणा भणियम्‌ रामाणो जेण हिन्दग देशस्‌ वच्चामों' “जन महाराष्ट्री जेकोबी भाग ३४, छए० २६२, हिन्दी साहित्य कोष, पृष्ठ ८८७, संस्कररए सं० २०१५ वि° २३ “इन्दीस्की रूस को त्राति = हिन्दी रूसी भई भाई - हिन्दी-शब्द सागर, तोसरा संस्करण पुं° ३८१३ द्वितीय स्तंभ. /-পশা ^




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now