उत्तर प्रदेश में महिलाओं की स्थिति का एक समाज शास्त्रीय अध्ययन | Uttar Pradesh Me Mahilaon Ki Sthiti Ka Ek Samaj Shastreey Adhayayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
233
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रम क्षेत्र में उनका योगदान अवश्य रहा होगा क्योकि महिलाये परिवार की
प्रमुख सदस्य थी जो पारिवारिक उत्पादन और उद्योग मे अपने श्रम के बल पर प्रमुख
भूमिका निभावती है ओर रही होगी | यह कहना अत्यत कठिन है कि उत्पादन मे उनकी यह
सक्रियता अत तक बनी रहती शी ¡ वस्तुत. यह कहा जा सकता है कि सिन्धु काल लिग
आधारित श्रम के बटवारे की सहमति का काल था। स्त्री -पुरुष दोनो ही एक दूसरे के
कार्य के महत्व को समझकर उसे उचित सम्मान देते थे। यही कारण था कि समाज
पुरुष-प्रधान होते हुए भी मातुवशात्मक था।
वस्तुत यह कहा जा सकता है कि सिद्ध सभ्यता मे महिलाओ की दशा सामान्य
शी ओर कथित रुप से पूरी सभ्यता मातृ सत्तात्मक थी। महिलाओ की स्थिति सम्मान
जनक होते हुए भी यह समाज पुरुष-प्रधान ही था। पुरुष की प्रधानता होने पर भी नारी
की यौनिकता को कोई खतरा नहीं समझा जाता था तथा मातृत्व ओर प्रजनन मे छिपी
नारी शक्ति की पूजा होती थी । आर्यो दारा भारत के बडे भूभाग पर कब्जा कर लेने और
यह के मूल निवासियो को जिन्हे वो जातीय तौर पर अपने से हीन समज्ञने थे. को अपने
अधीन कर लेने के बाद वर्गों मे बटा हुआ समाज विकसित हुआ और धीरे--2 नारी शक्ति
की पूजा की जगह पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने ले ली॥ अपने अधीन की हुई जाति के
लोगो में आर्यो ने अधिकांश पुरुषों को मार डाला तथा स्त्रियो को दास बना लिया। भारत
की धरती पर दास बनाया जाने वाला पहला समूह महिलाओ का था! महिलाओ की
दासता के साथ ही दास प्रथा को सस्थागत रुप मिला! बुनियादी स्तर पर पितृ सत्ता
की स्थापना के लिए किसी एक कारण या इतिहास मे किसी एक क्षण को जिम्मेदार नही
ठहराया जा सकता।
1 कलपगम यू, लेबर एण्ड जेन्डर, पृष्ठ 234 |
2 चक्रवर्ती उमा, “कन्सेप्चुलाइजिग ब्राहमनिकल पेट्रियार्की इन अर्ली इण्डिया जेन्डर कास्ट, क्लास एण्ड स्टेट” इकोनामिक
एण्ड पॉलिटिकल वीकली 3 अप्रैल 19931
3 वही।
4 वही तथा शर्मा आर, एस मिटीरियल कल्चर एण्ड सोशल फारमेशन इन ऐन्शेंट इडिया, पृष्ठ 38
5 लर्नर गडा, द क्रियेशन आफ पेट्रीयार्की, आक्सफर्ड एड न्यूयार्क
आक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस, 1986 पृष्ठ 217
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