काव्यांग त्रिवेणी | Kavyang Triveni
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
97
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ८ 1
किन्तु चरगास्त में दो गुर (53' रखने से गति मधुर टो जाती
है और पढने में कर्ण प्रिय हो आती है था:
यन्द शुरू पद-पद्म परागा | सःल सुवास सुरुचि अनु शागा ॥
शमिय मुरि मय चूरन चारू | शमन सकल भवरुज परिधारू ॥
चघपेया १०, ८ और १६ के विराम से इसके प्रत्तेक चरए
में ३० मात्राये होती है। चरणान्त में एक सगण (৩) तथा !
गुरु का होता आवश्यक है । यथा ०
परे प्रमट छृपाला, दीन दयाला, कौशिशव्या-हितकारी।
हरपित महतारी, मुनि-मन-द्वाणे, अद्भुत रूप निहारी ॥
लोचन अभिरामा, तनु धनश्यामा, निज आयुध्ष भुज चारी।
भूषण वनमाला, मथन विशाला, शोभा-सिन्धु खसरी ॥
तोमर इस छन्द के प्रत्येक चरण मे ६२ मात्रायें होती है
अन्त में गुरु लघु बर्णो' का होना आवश्यक है | यथा:--
तब चले बाण कराल। फुकरत जनु, बहु व्याल ॥
कोप्यो समर श्रीराम | चले विशिख निशित निकाम ||
न्दर १५६ और १२ पर विराम् देकर इसके प्रत्येक चरण
में रुप मात्रायं होती हैं। चरणान्त में दो शुरू वर्ण को होना
आवश्यक है | इसे सार छंद भी कहते है। यथो:-
हे अखिलेशवर दयानिशे प्रभु, संत्पथ हमे दिखाओ ।
सत्वर शान भानु प्रकडे वर, तम अशान मिद्दाश्री ॥
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