लोकप्रिय विज्ञान लेखन | Lokpriya Vigyan Lekhan
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(1८. )
की अनुकूलता। यदि मूल अर्थ जटिल है अर्थात् उसमें अनेक अर्थ-छायाओं
का मिश्रण है तो जबरदस्ती सरल ओर छोटे वाक्यो का प्रयोग भाषा को प्रसंग
तथा मूल अर्थं के प्रतिकूल ओौर परिणामतः अस्वाभाविक बना देगा।
2. जटिलता का अभाव- इसमे सन्देह नहीं कि जरिलता भाषा का दुर्गुण
है, किन्तु जटिलता के दो रूप हैं--एक आंतरिक ओौर दूसरा बाह्य । आन्तरिक
जटिलता से अभिष्ाय है अर्थ की जटिलता अर्थात् चिन्तन की जटिलता। जहाँ
चिन्तन गति ऋजु न होकर অতি और वक्र है वहाँ भाषा जटिलता से मुक्त
नहीं हो सकती और यदि उसे सरल करने का बरबस प्रयत्न किया जायेगा
तो वह सही अर्थ को व्यक्त नहीं कर सकेगी। यहाँ मूल दोष चिन्तन का है।
भाषा की जटिलता तो विचार की जटिलता की छाया है और विचार की छाया
होना भाषा का स्वधर्म और पातित्रत है | बाह्य जटिलता का सम्बन्ध वाक्य रचना
आदि से है, अनभ्यस्त या अयोग्य लेखक अशुद्ध शब्द प्रयोग, वाक्यांशों के
अनुपयुक्त नियोजन आदि के द्वारा वाक्य रचना को उलझा देते हैं जिससे अर्थ
व्यक्ति बाधित हो जाती है। यह दोष अनभ्यास और अयोग्यताजन्य है और
इसका परिहार कठिन नहीं है।
3. आडम्बर और अलंकार से मुक्ति---सरल भाषा काएक गुण हे आडम्बर
और अलंकार से मुक्ति । यहाँ आडम्बर शब्द के विषय में तो कोई भ्रान्ति नहीं
हो सकती। बह प्रत्येक स्थिति में दोष है और भाषा भी इसका अपवाद नहीं।
जिस प्रकार हीनताग्रस्त व्यक्ति व्यवहार और रहन-सहन में आडम्बर का समावेश
कर अपने अभाव को छिपाने कौ व्यर्थं चेष्टा करते हुये समाज में निन्दा के
भागी बनते हैँ उसी प्रकार अयोग्य लेखक भी भाषा को आडम्बरपूर्णं बनाकर
साहित्य मे निन्दनीय बन जाते हैँ । किन्तु अलंकार भाषा का दोष न होकर गुण
है-- अलंकार-मोह या कृत्रिम अलंकार या अनुपयुक्त अलंकार ही भाषा का
दोष हो सकता है । अलंकार जहाँ सहजात होता हे वहो तो वह भाषा का अनिवार्य
गुण बन जाता है-उससे सरलता बाधित नहीं होती ।
4. सही अभिव्यक्ति--अभीष्ट अर्थ कौ यथावत् अभिव्यक्ति सरल भाषा
का अन्तिमि ओर अनिवार्य कारण है जिस प्रकार निश्छल हुये बिना व्यक्तित्व
कौ सरलता असम्भव है उसी प्रकार अर्थं की निश्छल अभिव्यक्ति के बिना
भाषा सरल नहीं बन सकती । अर्थ यदि अमिश्र है तो भाषा की सरलता अमिश्र
वाक्य प्रयोग आदि में निहित होगी, परन्तु यदि अर्थ में ही जटिलता है तो
मिश्र वाक्य प्रयोग ओौर व्यंजक पर्यायों के बिना अर्थ व्यक्ति सम्भव नहीं हो
सकती और जहाँ अर्थ-व्यक्ति ही नहीं है वहाँ सरलता कैसी?
शब्दावली ओर वाक्य रचना का भाषा की सरलता के साथ सम्बन्ध है
इसमे सन्देह नहीं, किन्तु यह सम्बन्ध अनिवार्य नहीं है अर्थात् किसी विशेष
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