पूंजीवादी समाजवाद ग्रामोद्योग | Punjivadi Samajavad Gramodyog
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध शव
होते ही भिन्न-भिन्न खोतोंसे पूँजी बटोरनेकी आवश्यकता “पड़ती
ই) भिन्न-भिन्न देशोंसे कच्चा माल इकट्ठा करना पड़ता है, उत्पा-
दनके भिन्न भिन्न कार्योके किए असंख्य काम करनेवालोंकी जरू-
रत पड़ती है, ओर मालकी खपतके लिये उसे भिन्न भिन्न देशोंमें
भेजना पड़ता हे । इस अवस्थामें पहुँचकर व्यवसाय व्यक्ति-
विशेषकी वस्तु नहीं रह जाता बल्कि किसी संगठनके अन्दर आ
जाता है जो एक इकाईके रूपमे काम करता है | इस तरह पूँजी-
वादने बहुत बड़ा संगठन खड़ा कर दिया है जिसके अन्दर कदी
कहीं संसारभरकी शक्तियो काम करती दै । संगठनका मतलब है
केन्द्रीकरण । इस तरह प्रंजीवादी व्यवस्थामे प्रवन्धकी सारी
व्यवस्था कतिपय चुने हुए व्यक्तियोके हाथने आ जाती हे
ओर कारोबारकी सारी देखभाल यह छोटा गयेह करता है ।
कहा जाता है कि पच्छिमवालोमें इस तरहके . संगठनका
साद्या बहुत अधिक है। इसका मतलव यही है कि वहॉकी
आर्थिक व्यवस्थाने ऐसा रूप धारण कर लिया है कि इस तरह-
का केन्द्रीकरण अनिवाय हो गया है । इसलिए व्यक्तिगत ख्पसे
कामन कर वे किसी संगठनके अन्दर काम करनेके आदी हो
गये हैं ओर उसीको आश्िक हदृष्टिसे पसन्द करते है । जब उनके
सामने कोई समस्या आती है तो वे उसके हलके लिए संगठन कर
लेना ही ज्यादा पसन्द करते है ओर इस तरह वे उसपर संगठित
रूपसे विचार करते हैं। लेकिन इसका भतलव यह कभी नहीं
हो सकता कि इस तरहका माद्दा केवल उन्हीं लोगोकी विशेषता
है। हसारे देशकी जाति-प्रथा हमारे पूवेजोकी संगठन-योग्यताका
अपूर्व उदाहरण है । इससे स्वयं व्यक्त हो जाता है कि संगठित
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