श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 97 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 97

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 शाला सपकर बाहर चले गये तो उपर की कन्त के लड़को से नोचे को कक्षा वालों को पढवाकर पाठशाला का काम इतने सुचारु रूप से चलाया कि कोई प्रशिक्षित प्रधानाध्यापक क्‍या चलावेगा । बहुत से साधुओं को मी हमने देखा हं जौ पडे लिखे कुछ नहीं | आचरण भी उनके ऐसे ही सट्ट पट्ट हैं, किन्तु उनका সই নই জামী में सम्मान है, सेकडों राजे मद्दाराजे उनके शिष्य हैं । तो जैसे घन, अवस्था, विद्या ये भाग्य से मिलते हैं वैसे ही सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, गौरव ये भाग्य से मिला करत हैं| पर- सर्थ से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है। आध्यात्मिक शाति दूसरी वस्तु है । सम्पूर्ण ज्ञीवन् में हमने यही तो अन्नुभव किया हे । -जिनक लाखों शिष्य हें उन्हे भी आन्तरिक शान्ति नहीं, वे सदा अधिक से अधिक शिष्य बनाने को लालायित रहते हैं । जिनर भिन्न स्थानों में अनेकों आश्रम हैं, वे और अधिक आश्रम बनाने को व्यप्र बने रहते हैं। ज्ञिनका लाखों नर नारी जय जयकार करते हुए स्वागत करते हैं. बे और इससे भी वडा स्वागत चाहते हैं। जिनके बहुत से अलजु॒ुयायी हैं। वे और अधिक बनाने को प्रयसनशील रहते हैं.। ये आत्मशान्ति में आध्यात्मिक उत्थान से सहायक नहीं होते । ज्ञिनकके पास अधिक सम्पत्ति हो, अधिक च्सुयायी हौ, बहुत से शिष्य सेवक हों, बहुत सी सस्थाओं के -सचालक सस्थापक हो, वे शध्यासिकता में भी बढे चढे होंगे, यह आवश्यक नही । कहना चाहिये ये सब तो अध्यात्मम्ाार्ग मे विघ्न दै) किन्तु क्या किया जाय, पूवजन्म की वासना ভানু हमे इन कामों से नियुक्त करती हैं । बहुत स लोग कहते हँ--“बश्रह्मचारीजी द्वारा देश का, धमं का, समाजका चथा सहित्य काचडा उपयार हो रहा हे। न्भागचतती कथा की पुस्तको से कितनों का जीचन सुधर




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