भक्तunमाल | Bhatkamal

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Bhatkamal by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ भक्तप्राङ । ।- #सेवकहुये छालजीदास नाममिला रावावज्लमछारूजीके उपासकहुये दूसरा तजुमा एक और किसीने कियाहें नामयाद नहीं ह तीसरा.तजुमा राला गुमानीलाल कायस्थ रहनेचारे रस्थकके संवत्‌ १९०८ জলা प्तकिया चौथा तजुमा ठालातुलसीराम रामोपासंक खालारामघ्रसाद के पुत्र अगरवाले रहनेवाले मीरापुर अम्बालेके इलाक्रेके कठक्टरीके स- रितेदार उस मूल, भक्तमाल ओर टीकाको संबत्‌ १६१३ में बहुत प्रेम च पर्थिम करके शाख के सिद्धात्‌ के अनुसार बहुत विशेष वाक्यो सहित अति टलित पारसी मे उदू बाणी छियेहुये तजुमाकरके चोवीसं निछमें रचिके समाप्त किया ॥ . 77 * ,भक्ततालकी सहिस। का वर्णन ॥ - महिमा, व बड़ाई श्रीभक्तमालकी कोई वर्णन नहीं करसक्ता अपार है ओर इसरोक च परटोककी कामना पणे करने को जसे कल्पटक्ष व कामधेनुहे जो कोई सर्वदा पढ़ते हैं निश्चय करके तिसको भगवद्धक्कि प्राप्त होती है जो कोई संसारी कामना के सिद्ध होनेके निमित्त पढ़ते हैं तो वह भी बहुत शीघ्र सिद्ध होजाती है बहुत छोगोंको परीक्षा मिली हैँ. ज़ितना तीर्थोंके-स्नान दानादिक से पुण्य होताहे उसके दश गुणा अधिक इस भक्कमाल के पढने से मिलता हे संसार में तीन प्रकार के मनुष्य हैं एक विमृक्त दूसरे साधक तीसरे विषयी सो विमुक्त व साध- क को तो यह पोर्थी श्राएसेभी अधिक प्यारी है।कि उनका अभिष्राय अच्छी भांति से।निकलता है ओर विषयी को इस निमित्त लाभ देने' वाली है कि संसारी कामना इसके पढ़ने ,सेउप्राप्त।होती है और भर्गी- वत्‌ करी खर्‌ मन अ त्तो आइचर्य सहीं व इसके सिवाय यह कि हुत अहुत वातौ व ग्योरा खोल कर मयादा प्रेम ज्रौ वियोग ऐसे योग व रस ओ श्युगार के लिखे हये हैं यद्यपि वह सब सम्बन्ध किये गये भगत के प्रेमके हैं तथापि रीति प्रेम वास्तवी ओऔ मनम॒खी को एकही भाँति की है इस हेतु व्रे लोग,उन ,मर्यादाओं को मनमुखी भूमक सम्बन्धी समम्‌ कर भ्रेमकी रीति व मर्याद से ज्ञामयक्त होंगे ओर सुख आनंद पर्विंगे-तात्पय यही,हे 'कि तीनों भांति के-लोगों को, छाभ व प्रसन्नता द्वेनिवाला हे ओर क्यों न ऐसा होय कि भगवत को अपने भक्तोंके सहश-प्याराहे कि आप सुनते एक वैष्णव गुरुधनं




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