गाथा-संवत्सरी | Gatha-Sanvatsari

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Gatha-Sanvatsari by सीताराम चतुर्वेदी - Seetaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इतिहासका इंतिद्वास संसारमें सर्वश्रथम जो इतिहास छखे गए वे या तो महामारत- की शैली घटना-संकलनमें रूप थे अथवा शिलहेखेंकि रूपमें | किन्तु शिलालेख तो अस्थिर इतिहास-खंड हैं । जबतक उनके आधार ( शिल्य, स्तूप, स्तम्भ अथवा धातुपनन )का अस्तित्व रहता है तभीतक उनका शेतिहासिक महत्त्व भी रहता है। जहाँ वे नष्ट हुए कि उनके साथ-साथ उनका पेतिहासक मस्व भी नष्ट दो जाता है। शके द्वारा एक कानते दूसरे कानमे पड़कर जो इतिहासकी परम्परा चली वह भी पूर्ण प्रामाणिक नरं रह पाई वर्यो बह भी अनेक छोगोंके कानमें पड़नेसे बीच-बीचमें इस प्रकार सँवरती-सुधरती, वढ़ती-घटती आई कि उसका मूल रूप अस्पष्ट हो गया और यह कहना कटिन टो गया करि मूक वास्तविक बात कितनी थी और आगे चरर उसमे क्या परिवर्तन कर दिए गए । योएपमें इस प्रकरकी ऐतिहासिक सामग्री सामान्य धार्मिक अन्थ और धार्मिक पहुंछेख ( ठेबलेट्स ) आदि कई रूपोंमें मिल्सी है जिनमें अदूभुत घटनाओंका वर्णन, पुजारियों और पुजारिनिरयोरी सूची त्था दाताकी सूलली यादिका ठेवा भरा पड है। कहीं-कहीं ( जैसे रोममें ) परदरी ভীম अपनी पंजिकाओंमें केवल धार्मिक इतिहास ही नर्दी, वरन्‌ महत्त्वपृणि राजनीतिक घटनाओंका भी सोलद




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