गोपी ह्रदय | Gopi Harday

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Gopi Harday by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ जितने मेँ पिर अक सुरीछी आवाज़ने मंत्रमुम्घ सृष्ठिकों चोकन्ना कर दिया : “तारों की ज्योत में जैसे मृदुता, चंद्र के तेज में ज्यों शीतल्ता, । ज्वलंत सूर्य में अम्र तपन ज्यों, अरुण में छाछ गुछाछ ॥”-- ओर फिर वही 'बुल्ंद, हुलसित ध्वनि : £यों ही प्राणन मेँ नदद {” में रोमांचित हो झुठी | दिछ को कोओ अजीब, गंभीर, साथ ही अतिरुचिर व्यथा वेचैंन करने छगगी | में गुमसुम सी होने छगी । ससी दम अक सहेली अदगारी, “हरि हरि !” यह सुनते ही चंद वेखुद होकर रोने छगीं ! आश्चर्य जिधर यह तमाशा चरु रहा था, अधर अक गोपी “गोपा 5 5 छ !” चिछ्लाकर वेहोश सी हो गयी | तब भेक छोरी सी, मीठी सी, शर्मीछी गोपी- को शोर्य चढ़ा, गोया, ओर वह *जजबे में आ कर,मुकत कंठसे गाने छगी “प्रिया की नेन में ज्यों प्रीतम-छबव, प्रिया की छव प्रीतम-नैनन में | दीनदयाछ में बसे सदा हम, हम में दीनदयाछ ॥ रे, मेरे प्राणन में नंदछाछ |” || १ बुल्ंद--मँची २ जज़वे-आवेश




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