देव-रत्नावली | Dev-Ratnawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देव रलाष्ती १७
| ( & )
फले अनारन पांडर शरन
देखत देषः .महाडरु भांचे |
माधुरी भरन अब के बौरन,
| भौरन के गन मंत्र से धांच॥
लागि उड़े बिरदागिन की,
कचनारन बीच अचानक आचे।
सांचे हु कारि पुकारि पिकी कहें, এ
नाच बनैगी, बसन््त की पांचें॥
( १० )
कदु ओर उपधाय फरे जनि री, `
हवते दख क्यो सुख सो भरिबी |-
फिरि अतर হাঁ দিন कत.वसत के,
स्वत जीवित ही जरिबी ॥
बन वौरत बोरी हो जाउगी देव
सुगे धुनि कीकिल की दरिबीं।
जब डोलिंश ओर अबीर भरी,
` पमुहहा कहि बीर कहा कखिी
' पॉंडर--पीज्ञा |-भौरन--संमूह '“-अ्रसक--रोंब दाब | ,
সি
कंत--पति । बीर-- सखी |
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