देव-रत्नावली | Dev-Ratnawali

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Dev-Ratnawali by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देव रलाष्ती १७ | ( & ) फले अनारन पांडर शरन देखत देषः .महाडरु भांचे | माधुरी भरन अब के बौरन, | भौरन के गन मंत्र से धांच॥ लागि उड़े बिरदागिन की, कचनारन बीच अचानक आचे। सांचे हु कारि पुकारि पिकी कहें, এ नाच बनैगी, बसन्‍्त की पांचें॥ ( १० ) कदु ओर उपधाय फरे जनि री, ` हवते दख क्यो सुख सो भरिबी |- फिरि अतर হাঁ দিন कत.वसत के, स्वत जीवित ही जरिबी ॥ बन वौरत बोरी हो जाउगी देव सुगे धुनि कीकिल की दरिबीं। जब डोलिंश ओर अबीर भरी, ` पमुहहा कहि बीर कहा कखिी ' पॉंडर--पीज्ञा |-भौरन--संमूह '“-अ्रसक--रोंब दाब | , সি कंत--पति । बीर-- सखी |




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