राष्ट्रभाषा हिन्दुस्तानी [भाग १] | Rashtrabhasha Hindustani [Part 1]

Rashtrabhasha Hindustani [Part 1]  by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ट्रीय भाषाका विचार ७ -बोलनेवाटा जहाँ जाता द, वहाँ हिन्दीका ही मुपयोय.करता द, गौर्‌ मुससे किसीको माख्वयं नहीं होता। हिन्दी वोलनेवाले वर्म-प्रचारक५ और दके मौलवी सारे हिन्दुस्तानमें अपने व्यास्यान हिन्दीमें ही देते हैं, और अनपढ़- जनता भी अुसे समझ छेती हुैं। अनपढ़ गुजराती भी अुत्तरमे जाकर हिन्दीका थोड़ा बहुत जिस्तेमाल कर लेता हैँ, जब कि अत्तरका भैया वम्बजीके सेठकी दरवानगीरी करता हुआ भी गुजराती बोलनेसे बिनकार करता है, और सेठ भैयाके साथ टूटी-फूटी हिन्दीमें चोलना शुरू कर देता हैँ। मेने देखा हूँ कि ठेठ द्वाविड़ प्रन्तोरमे मी हिन्दीकी ध्वनि सुनामी पड़ती है। यह कहना ठीक नहीं कि मद्गासमें तो सव काम अंग्रेज़ीसे चलता हैं। मेने तो वहाँ भी अपना काम हिन्दीमें किया है। संकड़ों मद्रासी मुसाफ़िरोंकों मेने दूसरे छोगोंके साथ हिन्दीमें बोलते सुना ठं। फिर, मद्रास्के मुसलमान मामी तो ठीक-ठीक हिन्दी वोलना जानते हैं। यहाँ यहूँ याद रखना चाहिये कि सारे हिन्दुस्तानके मुसलमान अुर्दू बोलते हैं, और नव प्रान्तोमिं भुनकी संस्या कोनी छोरी नहीं हूँ । + सिस प्रकार राष्ट्रीय भापाके नाते हिन्दी भाषाकानिर्माणदौ चुका ह। हमने वहुत वरस पहले राष्ट्रीय भाषाके रूपमें मुसका अुपयोग किया हैँ। अर्दूकी जुत्पत्ति भी हिन्दीकी जिस शक्तिमें समाओी हुआ हैँ 1 मुसलमान वादशाह फ़ारसी या अरबीको राष्ट्रीय भाषा नहीं वना सके। बुन्होनें हिन्दी व्याकरणको माना, गौर मृदू लिपिका मुपयोग करके फ़ोरसी शब्दोका ज्यादा जिस्तेमाल किया ! केकिन माम जनताके साय वे अपने व्यवहारकों परदेशी भाषाके ज़रिये न चला सके। अंग्रेज हाकिमोसे यह জাল छिपी नहीं हूँ। जिन्हें फ़ौजी जातियोंका अनुभव हे, वे जानते हूँ कि सिपाही जमातके लिज हिन्दी या बुर्दूमें संकेत रखने पड़े हैं । मिस तरह हम यह जानते हूँ कि राप्ट्रीय भाषा तो हिन्दी ही हो सकती है। फिर भी मद्रासके पढ़े-लिखे छोगोंके लिये यह सवाल मुश्किल तो है।




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