प्राचीन भारतीय राजनीतिक विचार एवं संस्थाएं | Pracheen Bhartiya Rajnitik Vichar Evam Sansthayein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० प्राचीन मारतीय राजनैतिक विचार एवं संस्थायें भारतीय राजनीति से सम्बन्धित सूचनायें प्राप्त होती है। तारानाथ (ईसबी सत्‌ १५७५) ने भारतीय कानून का जन्म! नामक एक ग्रन्थ की रचना सन्‌ १६०८ में की । राजा प्रजातशत्र के काल में प्रारम्म होने वाली यह रचना मगध के मुकुन्द देव के शासन के व्रणेन के साथ समाप्त होती है । ` ३ शिला लेख सम्बन्धी स्रोत (10127910710 50प्रा८९५) भारतीय राजनीति की जानकारी के लिए शिला लेखों का पर्याप्त महत्व है। पत्थर पर खुदी हुई बातें प्राचीन तथ्यों के सम्बन्ध में एक प्रत्यक्ष तथा महत्वपूर्ण प्रमाण होती है । पत्थर, लोह अथवा भन्य धातु पर खुदे हुए ये तथ्य स्थायी श्रस्तित्व रखते हैं। ये हजारों की संख्या में प्राप्त हैं। भारत भर में तथा भारत की सीमाग्रों तक ये प्राप्त होते हैं । कम्बोडिया, जावा, बोनियों आदि प्रदेशों में संस्कृत के शिलालेख प्राप्त होते हैं । । इस प्रकार के लेखों को प्राय: पत्थर पर ही खोदा गया है । ये किसी भवन के मुख्य द्वार पर, किसी खम्भे पर, क्रिसी मूति की सीढ़ियों पर तथा ऐसी ही अन्य जगहों पर खोदे जाते थे जहां पर॒ कि आसानी से कटाई কী जा सके और उसे सुरक्षित भी रखा जा सक्रे । ये संगमरमर, लाल पत्यर, धातु, तांबा, लोहा श्रादि पर भी खोदे गये हैं । इने शिला लेखों की भाषा उस क्षेत्र में प्रचलित भाषा होती थी । श्रधिकांश प्राचीन शिलालेख मध्य भारत में प्राप्त होते हैं। संस्कृत माषा उत्तरी भारत में श्रधिक प्रचलित थी। दक्षिण में यह द्वविड़ों की साहित्यिक भाषा तमिल, कन्नड़ एवं तेलगु आदि से प्रतियोगिता न कर सकी । अ्रतः इस क्षेत्र के शिला लेखों में प्रायः ये ही भाषायें प्राप्त होती हैं। त्रे शिला लेख श्रलग-अलग लक्ष्यो को सामने रखकर चलते थे । इनमें से कुछ का उद्देश्य नियमों की घोषणा करना होता था । अशोक के श्रधिकांश शिला लेख इसी प्रकार के हैं । श्रन्य शिला लेख स्मृति के लिए भी बनाये जाते थे । क्रिसी भवन, घटना, योग्य नेता, सती आदि को स्मृति को बनाये रखने के लिए इनकी रचना की जाती थी । कुछ शिला लेख राजाओं की प्रशंसा या गुणगान के लिए बनाये गये । दूसरे कुछ लेख कुए की खुदाई के समय. भवन के शिलान्यास के समय, कोई अ्रस्पताल बनाते समय, या इसी प्रकार के श्रन्य लोक हितकारी कार्यों के लिए ग्रामीणों द्वारा दिये गये सहयोग, कर द्वारा संग्रहीत धन, दान द्वारा प्राप्त आय आदि का उल्लेख करने के लिए बनाये गये हैं। सांची के स्थूप की भांति स्थापत्य कला के माहिरों का नाम रोशन करने के लिए भी शिला लेखों की रचना का मार्ग अ्रपनाया जाता था | कुछ शिला लेख शुद्ध रूप से धार्मिक लक्षय को सामने रखकर प्रागे बढ़ते हैं गौतम बुद्ध की मूति के चरणों मे लिखे गये उनके उपदेश आदि इस प्रकार के शिला लेखों के उदाहररशा हैं ।




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