भारतीय जैन - साहित्य - संसद भाग - 1 | Bharatiy Jain - Sahity - Sansad Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रध्यक्षीय भाषण :११: प्रकाशित होनी चाहिये । विविध विषयों पर यह गृुन्थ-संपत्ति किस प्रकार विभक्त हुई है और किस प्रकार क्रमशः भिन्न-भिन्न काल-खण्डो मे गृन्थो का निर्माण हुआ है, यह जानना भ्रावश्यक है) ५. संस्कत, प्राकृत, अपम्रंश श्रौर हिन्दी के उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण काध्यों का एक विवरण प्रकाशित करने की परम आवश्यकता है, जिन गृन्थो पर जिज्ञासु विद्वात्‌ शोध-कार्य कर सकें । ६. प्रत्येक छह महीने पर साहित्य, दर्शन, कला, राजनीति, श्रर्थशास्त्र प्रभृति विषयों से सम्बद्ध कुछ ऐसे शीर्षक प्रकाशित करने की प्रावश्यकता है, जिन पर शोध और भप्रन्वेषण का कार्य किया जा सके । भारत में संशोधन-कार्य कई एक महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों श्रौर संशोधन- संस्थाओं में हो रहा है। परन्तु उत्का विहंगम हृष्टि से भ्रवलोकन करने में क्रठिनाइयाँ रहती हैं, जिनको दूर करना संशोधन-कार्य की प्रगति के लिए श्रत्यन्त लाभदायक होगा | ७. प्रमेषकमलमातंण्ड, श्रष्टसहज्नी, न्‍्यायकुम्रुदचन्द्र श्रौर भ्रनेकान्तजयपत्ताका जैसे महनीय दार्शनिक ग्रंथों की हिन्दी टीकाएँ प्रकाशित करने की आवश्यकता है । ८. देश के नवनिर्माण और चारित्रिक विकास के लिये आधुनिक भारतोय भाषाप्रों में जैन कथाश्रों के सार को लेकर श्रहिसा, सत्य, संयम झौर त्याग के सिद्धान्त का निरूपण होने की ग्रावश्यकता है । भ्रतः उपन्यास, काव्य, कथा-कहानियाँ श्रादि नवीन शैली में लिखी जानो चाहिये । ९. राम, कृष्ण, हनुमान श्रादि भारतीय धर्म-नेताग्रों के चरित जैन हृष्टि से हिन्दी एवं भ्रंग जी में प्रकाशित होने की श्रावश्यकता है । १०. राजनोति, ্খগাল্সা, मुद्राशास्र प्रभूति लोकोपयोगी जैन गुन्धों की सविवरण परि- चयात्मक पुस्तिका के प्रकाशित होने की महती श्रावश्यकता है जिससे प्रन्वेषण करने वाले विद्वानों को उक्त विषय के जैन ग॒न्धों से सहायता प्राप्त हो सके। जिज्ञासु निष्पक्ष होने पर भी ग्रन्थों के ज्ञात न होने से यथार्थ स्थिति से ग्रपरिचित रह जाता है । ११. मेरा यह विश्वास है कि विहार का प्रामाणिक इतिहासं जैन माहित्य के सम्पक्‌ प्रध्ययन के बिना अपूर्ण है। प्रतः संसद्‌ के सदस्य जैन वाह्मय से विहार सम्बन्धी ऐतिहासिक तथ्यों के साथ विहार के प्राचीत ग्राम और उनकी श्राधिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति के सम्बन्धमें सन्दर्भ सहित तथ्य प्रस्तुत कर सकें, तो विहार-राज्य के इतिहास के लिये बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध हो जायगी । इसी प्रकार महाराष्ट्र, गुजरात, दक्षिण मारत एवं राजस्थान के सम्बन्ध में भी प्रामाणिक तथ्य जैन साहित्य से संकलित किये जा सकते है । मैंने एक संक्षिप्त रूपरेखा श्राप के सामने उपस्थित करने का प्रयास किया है। वाइुमय श्रखण्ड भ्रौर श्रद्धत होता है। उसके साम्प्रदायिक भेद नहीं किये जा सकते। यहाँ जैन साहित्य कहने का मेरा श्राशय इतना ही है कि जो वाइममय जैनधमं के उपासक कवियों भ्राचार्यों और लेखको द्वारा प्रसुत हुआ है वह ज॑न साहित्य है। वस्तुतः यह साहित्य सौन्दर्य-लालसा की पूर्ति एवं मानवता के निर्माण-पथ मे बाल्मीकि, व्यास, कालिदास, शंकराचायं ক্সাহি विद्वानों के साहित्य के समान ही उपयोगी है । मैंने श्रापका बहुत समय लिया । मैं आपको एवं संसद्‌ के सदस्यों के लिये धन्यवाद देता हैं, जिन्होंने मुझे यह भ्रवसर प्रदान किया । ज्ञान-देवता की जय । सर्वे सुखिनः भवन्तु । € जनवरी, १६६५




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