डब्रोवस्की | Dabrovaski

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Dabrovaski by गिरिजा शंकर पाण्डेय - Girija Shankar Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है] उपस्थित करता, वहीं डब्रोवस्कीका वह आदर करता। सेनामें दोनों साथी रह चुके थे और ट्रायेकुरोव अपने मित्रके तीतर और हृद' स्वभाव- से भल्नीमाँति परिचित हो चुका था | परिस्थितियोंवश वे एक दूसरेसे बहुत काल तक विल्वग रहे थे। मंमटोंमें. फेसकर डब्रोबस्कीको अपने गाँव रह जाना पड़ा था, जहाँ ही अब उसकी सारी सम्पत्ति सिमट चुकी খী। কিবিজ্লা पेग्रोविचने जब यह सुना तो उसने उसे सहायता और संरक्षण देनेका प्रस्ताव किया जिसे डब्नोवस्कीने सीधा इन्कार कर दिया रौर निर्धन तथा पूर्ण स्वतंत्र बने रहना ही चाहा । कुछ वर्षों बाद द्रायेक्रोव जब जेनरत्न-इन-चीफ पदसे अपकाश लेकर ` पने गोवर लौय तो उसके मिनि उसे देखकर बहुत हषं मनाया | तबसे दोनों मिन्रोंका एक दिन भी ऐसा न बीता जिसे उन्होंने बिना मिले जाने : दिया हो और क्िरिल्ला पेट्रोबिच, जो कहीं किसीके घर जानेकी कृप न करता, अपने इस मिन्रके छोटेसे घर सदैव जाता रहता था। थे दोनों एक ही वयके भी थे, समाजमें एक ही वर्गके सदस्य थे और एक ही दंगपर पाल्ते-पोसे मी गये थे। उनके विचारों और स्वभावर्म भी कुछ समानता थी । कुष्ठं मामलों तो उनके लद्धय एक प्रकारके होते, 'एक मार्ग होता; दोनोंने प्रेम-विवाद किया था, दोनों ही की पत्नियाँ विवाहके शीघ्र ही बाद चल बसीं श्रोर दोनोंको एक-एक सन्तान हुईं। डब्रोबस्कीका ' पुत्र पीटर्सबर्गमें शिक्षा प्राप्त कर रहा था, जबकि किरिल्ला पेट्रोविचकी पुत्री अपने प्िताके साथ ही रहती | किरिज्ञा प्रायः बब्रोवस्कीसे कहा करता--- “श्र गैविद्ोविच | ख्यात्न रजो, तुम्हारा बोल्ोदा अगर पढ़ लिखकर बड़ा आदमा हुआ तो में अपनी कन्या माशाका ब्याह उसके साथ कर सकता हूँ, भल्लें ही वह उतना ही दीन और गरीब है जितना कि गिरजाधरका मूसा |” সমান বীপিভীবিত্ন अपना सिर हिलाता और कहृता---“नहीं 'किरिज्ला पेट्रोविच ! भेरे बोलोद्ाकी ठम्हारी मेरिया किरिलोब्नासे कोई जोड़ नहीं है। उसके जैसे गरीब आदभीकी शादी तो किसी निर्धनकी' कन्यासे ही होनेमें ठीक है। इससे वह अपने घरका प्रधान बन सकेगा;




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