जय बंगला जय भारत | Jay Bangala Jay Bharat

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Jay Bangala Jay Bharat by राम कुमार - Ram Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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পপ পা तुम बोलते भी धीमी आवाज में হী, জব বুলৃমা । “श्रो, भई तुम आंखें मूंघ लो, समझ लो कि रेडियो पर कहानी सुन रहे हो, जिस की आवाज़ धीमी की हुई है ।। रफ़ीक ने उत्तर दिया और कहानी सुनाने लगा । शुक्रवार को परिणाम निकला तो समद प्रिसिपल के कमरे में से यों भागा, जेसे उस का अपना परिणाम निकला था। उसका मुह लाल हो गया था। কু हुए सांस से वह एक जगह रुक कर हाथ में पकड़ी हुई गज़ट खोल कर देखने लगा। उसकी नज़र रफ़ीक के रोल नम्बर पर पड़ी । उस का दिल धड़कने लगा। रफ़ीक पास हो गया था। उसने साढ़े चार सौ में से तीन सौं साठ नम्बर लिए थे। समद के चेहरे की लाली में से खुशी फांकने लगीं। रफ़ीक के अब्बा की दवा, मां और बहन के लिए कपड़े, पत्नी के लिए आपरेशन का खर्चा समद की आंखों के सामने पड़ा था, कागज के पुज पर नम्बरों के रूप में । रफ़ीक ने किस हालत में नौकरी करके घर के खर्चे का बोभ ढोतें हुए, दिए की रोशनी में पढ़ाई का काम पूरा किया था। महफ़िलों में कहानियां पढ़ कर साहित्य-जगतु में एक स्थान बना लिया था। रेडियो के प्रोग्रामों में भाग ले कर उसने थोड़ी बहुत चांदी भी कमाई थी, लेकिन इतनी नहीं कि घर में प्रतिदिन सब्जी बन १६.




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