मनु का राजधर्म | Manu Ka Rajdharm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न পসরা नमिन निवोध + तत नना ধ সনির এ ॥ ০) ` > राजा कौ दैवी उत्पत्ति का सिद्धान्त राजा की उत्पत्ति कै विषय में मानवधर्म शास्त्र में ऐसा वर्णन उपलब्ध है---ईहवर ने इस समस्त संसार की रक्षा के निमित्त इद्ध, वायु, यम, सूर्य, अग्ति, वरुण, चन्द्र और कूबर की शाइवत मात्राओ्रों ( सारभूत अंशों ) को निकाल कर राजाका सजन किया । * मानवधर्मशास्त्र के उपर्यक्त वन के आ्राधार पर ऐसा स्पष्ट विदित होता है कि मानवधर्मशास्त्र में राजा की दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त की स्थापना की गयी है । इतना ही नहीं वरन यह उद्धरण राजा को देवों से भी ऊँचा स्थान देता है क्योंकि इस वर्णोन के अनुसार इन्द्र, बाय, यम आदि गआ्राठ प्रधान देवों के विशिष्ट गणों को संग्रहीत कर राजा में उन की स्थापना की गयी है । इस प्रकार राजा इन आठ प्रधान देवों के सार भूत मात्राओं को धारण करने के कारण इन आठ प्रधान देवों में से प्रत्येक से बड़ा माना जाएगा। इस प्रकार मानवधर्मशास्त्र में राजा को विशिष्ट देव का पद दिया गया है । मानवधमंशास्त्र में, इसी लिए, राजा का पद अत्यन्त पुनीत माना गया . हैं । इस पद पर जो कोई व्यक्ति आसीन किया जाता है वह परम देवता माना जाता हैं। इसी नियम के अनुसार मानवधर्म शास्त्र में ऐसा श्रादेश किया गया है कि राजा चाहे बालक ही क्‍यों न हो परन्तु यहु समझ कर कि वह मनृष्य है, उसका श्रपमान नहीं करना चाहिए क्योकि राजा मनुष्य रूप में एकं महान देवता पृथ्वी तल पर विचरता है ।च एसे राजा का अ्रषमान সি करना परमदेवता का अपमान साना जाएगा। मानवधर्मशास्त्र में राजा के विषय मं कहे गए इन वाक्यो के पठ लेनं के उपरान्त इस विषय का लेश- ` मात्र भी सन्देह नहीं रह्‌ जाता कि मानवधमंशास्त्र में राजा की दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है 1. प्रत्तु यह कहना कि राजा की देवी उत्पत्ति कौ विचारधारा का उद्गम জজ १--इख्रानिलयसार्काणा सरनेश्ण वरुणस्थ च । चन्द्रवित्तेशयोक्चव मात्रा निह त्य शाश्वतः ॥ | श्लोक ४ श्र० ७ मानवधर्मशास्त्र । रक्षार्थमस्य सवस्य राजानमसृजत्रभः ॥ পাসের हि 018 70 7 हक इलोक ২ স্স০ ७ सानवधमंशास्त्र ॥। २---बालो ऽ पि नावमन्तव्यो मनुष्य इति भभिपः। ` ४ महती देवता होषा नररूपण तिष्ठति ॥ ` ५ इलोक ८ श्र० ७ सानवधर्मशास्त्र ॥।




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