गोखले - मेरे राजनीतिक गुरु | Gokhale - Mere Rajanitik Guru

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Gokhale - Mere Rajanitik Guru by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोखलेके साथ ११ गोललेकी और प्रोफ़ेसर रायकी दातें सुननेसे मेरी तृथ्ति ही न होती थी, क्योंकि आनकी बातें देशहिदसे सबंध रखनेवाहो हॉती थी, या कोओ ज्ञानवार्ता होती थी। कुछ बाते दुःसद भी होती, क्योकि भ्रम नेताओकी टीका होती थी। भिसके फलस्वरूप जिन्हें मैते महान योद्धा समझता सीखा था वे मुझे बौनें दिखाओ देने लगे। गौखलेको कायं -प्रणारीसे मुज्ञ जितनी प्रश्षन्नता हुओ आअतनी ही शिक्षा भी मिली | वे अपना अेक क्षण भी बेकार न जाने देते थे। मैने देखा कि अुनके सारे सबंध देशकार्यके छिजे हैँ। सारी बातोका विषय भी देगहित होता था। आनकी वातोर्मे मुझे कही मलिनता, दम या झूठकी गध न मिछी | हिन्दुस्तानकी गरीबी और गुलामी अन्हेँ प्रतिक्षण चुमती थी। कितने ही তীয়, कितने ही विषयोर्मे भुनकी दिलचस्पी पैदा कराने आते। अन्हँ वे भ्रेक ही जवाब देते -- “ आप यह काम कीजिये, मुझे अपना करने दीजिये । मुझे तो देशकी स्वाधीनता प्राप्त करनी है। वह मिलतेके बाद मुझे और कुछ यूझगा। फिलहाल तो बिस धधेसे मेरे पास भेक क्षण भी वॉंकी नहीं बचता।” रोनढेके प्रति अूनका पूज्य भाव तो बात-बातमें टपकता था। “रानडे यह कहते धे यहे तौ अुनकी वातचौतमें लगभग *सूत अुवाच' जैसा था। मे जब वहा था आुसी बीच रानडेकी भयत्ती (या पुण्यतिथि अब ठीक याद नहीं रहा) पड़ती थी। अँसा जान पडा जसे गोखले यमे सदा मनाया कस हो! नुम समय वहा मेरे सिवा यूनके मित्र प्रोफेसर कायवट ओर मेक सव-जज महाराय थे। जिन्हें भुन्होनें जयती मनानेको निमत्रित किया और भूम अवसर पर अुन्दोने हम लोगोको रानडके अनेक संस्मरथ सुनाये । रानडे, तैलंग और माडलिककी तुलना भी की। मुम यष है कि आन्होंने तैछगकी भाषाकी प्रशंसा की। माडलिककी *९ नाते स्तुति की। अपने मुवक्किलका वे बितना खयाठ रखते दृष्टातरूपमें अेक किस्सा सुनाया कि रोजकी ट्रेन छूट तरह स्पेशल ट्रेन खुलवाकर वे कंचहरी पहुचे थें। तोमुखी प्रतिभाका वर्णन करनेके भुपरात अुस बाहके




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