किशोरावस्था | Kishoravastha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“साँच को आँच কযা 1৮ ३ सारी भाषा दी को बदनाम कर रक्खा द । उन्दं जैसे सादौ, वैते दी उमरखय्याम और उनके छोटे भाई जौक और दाग জনন हैं। सभ्य पुरुषों के बीच और नाम न लीमिए; শিকারি के लिये इतने ही चहुत हैं । परु ध्यान रहे, ऐसा करने में हमारा कोई ल्ञाम नहीं; हम अपने लद्दय से यहुत दूर निकल जाते हैं । प्रश्न यद है कि आपको कौन-सा ऐसा कवि मिलता है, जिसकी रचना में साधारणतः स्त्री-पुछष के मनोगत भाव, इच्छा-वासनाश्रों का वर्णन तथा सांसारिक जीवन और व्यव- द्वार का संकेत नहीं है ) सच तो यदद है कि बहुत लोगों फो बालकों के द्वाथ फेबल फलुपित विचास्पूर्ण पुस्तकें देना दी श्रीकर नदी है, बरन्‌ वे धमे, पवित्रता और सुधार के नाम बालकों के स्वतंत्र रूप और जीवन के रर्यो फा पता पाने और उनके विपय में परिचय लाभ करने के विरुद्ध हैं । इस पूछते हैं कि क्‍या आप लड़कों को रामायश-सी उत्तम पुस्कक भी न पढ़ने देंगे ? भक्युक्षमणि तुलसीदास के दोदे की व्याख्या क्‍या मनुध्य के स्वभाव को जाने विना ही कोई फर सक्ता दै ! सममावे, देखे तो सदी 1 किसी निर्दोष अल्प-वयस्क कुमार को कोई नीचे का पथ कैसे सममावेगा--




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