तुलसी सतसई सुबोधिनी टीका युक्त | Tulsi Satsai subodhini Teeka Yukt

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Tulsi Satsai subodhini Teeka Yukt by रामचन्द्र - Ramchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( $३ ) किसने रखा है। यही कारण है कि उन्होंने 'वाम रामत्रोरा सम रात्यो इस पद की रचना की हैं। अधिकतर सम्भव है कि यह नाम उनके गुर ने ही रखा होगा। प्रसिद दीकाकार प॑० समेझर भदती इस भवन की दीका करते हुए इस प्रकार ल्खिते हैं-- “मई राम का गुलाम भौर (गुरने) मेरा रामतरोखा नाम रखी है 1 ली हो, रामब्रोछा ने गुरु की सेवा में ही रहकर विद्या पढ़ी और चहीं रास की भक्ति की शिक्षा मौर दीक्षा री । जब्र इनकी युवा अवस्था इदं रव एता साने प्र दनक भामा अपने घर ले गये और इनका विवाह दीनवन्धु प्रादक की कन्या 'रनावली' के साथ क्‍शय दिया और भ कहते हैं कि इस देवी से (तारकः नामक एक एत्र भी उत्पन्न हुआ था जो बचपन से ही रर गया। भ्रवाद है कि रामबोल बड़े ही स्लेण थे । शिशुपत्र की सारी शिक्षाएँ ये स्री के प्रेस-राश में बद्ध होकर भूल बैठे मोर विषय में अनुरक्त हो गये। गोसाईजी के अत्य भक्तो ने इनकी, सथनी खी क प्रति परमासक्ति का वगेन काते ए इस प्रकार म्ररूप से काम लि है कि इन्हें पूरा पागठ बनाकर छोड़ा है। वर्षा-ऋतु की गंगा को तरकर ससुरा जाना, छष्पर परं चद स्प पृरष्करर ममन मे सदना इादि लिखकर इनकी महिमा को धूछ में मिलाया है। क्या फाव्क खोकर जाते तो इनके ससुरा वाले छादी मारते ? एम उती स्पे को पकदकर अगिन से छष्पर प्र क्र वाहरं भये ! स्पं ने काय नहीं और नीचे गिर मी मर्दी; इत्यादि वाते जश्च की हैं। अधिकतर सम्भव है कि विरोप अनुरक्ति देखकर इनकी धर्मपस्नी ने इछ उपदेशा त्मक बाक्यों के साथ कोई सुभनेवा्टी घाद मी क्ट दी हो । कटा जाता है कि उनकी जी ने उन्हें छत्जित करने के स्ए ये ठोहे कहें थे--- है




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