आनन्द यात्रा | Aanand Yatra

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Aanand Yatra by संत विनोवा - sant vinova

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“विहार सें प्रवेश ७ सर्वोदिय-समाज की योजना में हमने जो रचना की है, उसको कुछ लोग (लूज ऑर्गनाइजेशन? यानी 'शिथिल्ल रचना? कहते है | रचना को अगर हम शिथिल करें, तो कोई काम नहीं बनेगा । इस वास्ते रचना शिथ्िल नहीं होनी चाहिए.। पर यह 'शिथिल्ल रचना? भी न होकर घअरचना? है, यानी केवल विचार के आधार पर दम खड़े रहना चाहते हू । “और दूसरा ओजार है, करतृत्व-विभाजन । सारा कतृत्व, सारी कर्म- शक्ति एक केन्द्र में केन्द्रित नहीं होनी चाहिए। इसलिए दम चाहते हूं कि हरएक याँव को यह हक हो कि वहाँ फीन-सी चीन आये श्रार्‌ फौन-सी चीज न आये, जिसका निर्णय वह खुद कर सके | अगर कोई गाँव चाहता है कि हमारे यहाँ कोल्टू चले ओर मिल का तेल न आये यानी मिल का तेल आने से रोके, तो उसे रोकने का हक होना चाहिए |***'***** जैसा परमेश्वर ने किया है, वेसा हमको करना चाहिए | परमेश्वर ने श्रक्ल का विभाजन कर दिया । दरणक को अल दे दी--बिच्छू को भी दी, साँप को भी दी, शेर को भी दी, मनुष्य को भी दी । कम-वेशी सही, लेकिन हरएक को अकक्‍्ल दे दी ओर कहा कि अपने जीवन का काम अपनी इच्छा के आधार से करो । ओर तत्र सारी दुनिया इतनी उत्तम चलने लगी कि वह विश्वांति ले सकता है ओर यहाँ तक कि लोगों को शंका भी होती कि परम है या नहीं। हमको राज्य ऐसा ही चलाना होगा, जिससे शंका हो जाय कि कोई राज्य-सत्ता है या नहीं। हिन्दुस्तान में शायद राज्य-सत्ता नहीं हे ऐसा भी लोग कहें, तथ्र॒ हमारा राज्यशासन अटिसिक होगा। इसलिए एम झाम-राज का उद्धोप करते हैं ओर चाहते हैं किम में निर्ग फी रुत्ता हो। श्रर्थात्‌ आ्रामवाले नियंत्रण की सत्ता अपने द्वाथ मे लें ॥! इस जनशक्ति के निर्माण के लिए बात ने चार पहलूबाला एक कायं क्रम पेश किया: ( १ ) रचनात्मक काम करनेयाली चारी सत्था एक सत्त मे पिलीनीकस्णः; ८२ ) १३५७ तक मृढान-वन्च नं पौत्र करोड़ एकड़ जमीन की प्राप्ति, ( ३ ) सन्पत्तिदान वस्च और ( ४ ) दृतांजलि ।




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