जनपद बादा की औधोगिक संरचना उधोग शून्यता के संदर्भ विशेष में | Janpad Banda Ki Audogik Sanrachana Udhog Shunyata ke sandarbh Vishesh me
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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परिश्रम के द्वारा पृथ्वी के उन्नत पर्वतों, पठारों अथाह समुद्रों तथा दुर्गम स्थानों की खोज
की है एवं अपनी कुशाग्र बुद्धि से इनकी स्पष्ट झांकी सभी के सम्मुख प्रस्तुत की है। मानव
अपने शान व परिश्रम से आज प्रकृति से शासित नहीं वरन प्रकृति 'पर शासक बन वैठा है
परन्तु हमारे देश भारत में भी कुछ ऐसा है कि यह देश संसाधनों से युक्त होने पर भी
वर्तमान विकास की दौड़ में पीछे है। भारत एक विकासशील राष्ट्र है जहां स्वतन्त्रता के 56
वर्ष बाद भी पूर्ण औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है। प्रकृतिप्रदत्त साधनों से धनी होने के
बावजूद भी यहां निर्धनता, कुपोषण, बेरोजगारी आदि का साम्ग्रज्य व्याप्त है। औद्योगिक
विकास के लिए उत्पादन के साधन एवं पूंजी एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करती हैं , लेकिन
प्राकृतिक साधनों का अपूर्णं विदोहन एवं निम्न आय संतुलन की वजह से पंजी निर्माण की
गति धीमी होने के कारण ओद्योगिक विकास अपनी युवावस्था में ही स्थिर है। उद्योगों की
स्थापना, विकास, आधुनिकीकरण, विवेकीकरण एवं नवीन प्रौद्योगिकी के प्रयोग आदि सभी
कार्यो के लिए पग-पग पर पूंजी की आवश्यकता पड़ती है, परन्तु भारत में पूंजी निर्माण
की गति अत्यन्त धीमी है ओर यही कारण है कि औद्योगिक विकास की गति भी बहुत धीमी
है। परिणाम यह है कि पूर्ण आर्थिक विकास एक दूर कौड़ी नजर आता है क्योकि ओद्योगिकरण
एवं आर्थिक विकास में सीधा सह-सम्बन्ध पाया जाता है। उद्योग-धन्धे ही किसी देश के
विकास को परिपक्वता प्रदान करते हँ ।
जनपद बांदा के संदर्भ विशेष में दृष्टि डालने पर जैसा कि पूर्वं विदित है कि जनपद
प्राकृतिक साधनों
से परिपूर्णं है। लेकिन ओद्योगिकरण का अभाव, अवस्थापना की
पुजीगत साधनों एवं उद्यमिता के अभाव नै जनपदीय
जटिल समस्याओं ने जकड़ रखा है। बांदा की अर्थ
रित है। कृषि की
तुलना में निरन्तर तीव्र गति
ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी तथा प्रछन्न बेरोजगारी को जन्म
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