आप्तमीमांसा | Aptamimansa
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न.
२८
२९
३०
३१
३२
३३
३४
३५
३६
३०
ই ८
३९
॥
द
च्छक
हेतुना चद्विना सिद्धिद्वेत वाइमानतो न कम ॥
अद्वित न बिना द्वतादहेतुरिव हेतुना 1
सह्विन प्रतिषेधो न श्रतिषेष्याइते कचित् ॥
एथक्तेकान्तपक्चेऽपि प्रयक्त्वादटयक्तु तौ ।
पथक्ते न धरयक्त स्यादनेकस्यो ह्यसौ गुण ॥
सतान समुदायश्च साधर्म्यं च निरडरा ।
्रत्यभावश्च तत्सर्वं न स्यादेकत्वनिदवे ॥
सदात्मना च मिन्न चेज्दान ह्ेयाद द्विषाप्यसत् !
ज्ञानाभावे कथ ज्ञेय बहिरन्तश्व ते द्विषाम् ॥
सामन्यार्था भिरोन्येपा विदोपो नाभिरप्यते ।
सामान्याभावतस्तेषा सपैव सकला गिर ॥
विरोधानाभयैकात्म्य स्थाद्वादन्यायविद्विपाम् ।
अवाच्यतकान्तेष्प्युक्तिनांवाच्यमिति थुज्यते ॥
अनपेक्षे प्रथक्त्वैक्ये ह्मवस्तुद्रयहेतुत ॥
तदेयैकय प्रथक्त्व च स्वमेदै साधन यथा ॥
सत्सामान्यात्तु सर्वेकष्य पथद्धव्यादिमेदत ।
मेदामेदाव्यवस्थायामसाधारणहेतुव॒त् ॥
विवक्षा चाविवक्षा च विश्लेष्ये3नन्तवर्मिणि 1
यता विशेषणस्यात्र नासतस्तस्तदार्थिमि ।
प्रमाणगोचरौ सन््तौ मेदामेदौ न सइती 1
तावेकनाविरुद्धी ते ग्रणमुख्यविवक्षया ॥
नित्यत्वैकान्तपक्षेऽपि विक्रियानापपदयते 1
श्रागव कारकामाव क प्रमाण कर तत्फलम् ॥
সনাগক্কাবেজীক व्यक्र चदिद्रियाथवत् ।
ठ च नित्य विकार्यं कि साधोस्ते शाखनाद्रहि ॥
यदि सत्सवंधा कार्य पुवनोतत्तुमईति 1
परिणामप्रक्लसिश्व तित्यन्वेकान्तवाघिनी ॥
प्रुण्यपापक्रिया न स्थाग्रेत्यमावफ़ल कुत ॥
ঘদীহী च तेषा न यपा त्व नासि नायक 11
সে
३५
३९
३९
४१
४१
द
दे
५६
८
४९
User Reviews
No Reviews | Add Yours...