शिबली | Shibali

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Shibali by ज़फर अहमद सिद्दीक़ी - Zafar Ahamad Siddiqiजानकीप्रसाद - Jankiprasad

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ज़फर अहमद सिद्दीक़ी - Zafar Ahamad Siddiqi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-वुत्त 15 पाठ्यक्रम बनाया। ऐच्छिक भाषा के रूप में हिन्दी और संस्क्ृत की शिक्षा की व्यवस्था की 1 आधुनिक अरबी भाषा में लेखन और भाषण की दक्षता में वृद्धि करने प्र बल दिया। प्रतिभाशाली विद्याथियों की एक कक्षा को शिक्षा देकर रचना तथा संपादन कार्य के लिए तैयार किया। उच्चतर शिक्षा का प्रबंध किया । नदवा के पुस्तकालय को नयी पुस्तकों से समृद्ध किया । 'अलनदवा' के नाम से एक स्तरीय शोध-पत्रिका की शुरुआत की । नंदवा की स्थायी आय के नये स्रोत पैदा किये। इसकी स्थायी इमारत के लिए सरकार से अनुदानस्वरूप बड़ी राशि ली। बड़े ही भव्य रूप में शिलान्यास समारोह आयोजित किया और पठन-पाठन के लिए सुंदर भवनों आदि का निर्माण कराया। लेकिन शिबली और नदवतुलउत्मा के दूसरे व्यवस्थापकों में कुछ बातों को लेकर अंततः अविश्वास और अनबन की स्थिति पैदा हो गयी। इसलिए जुलाई, 1913 ई. को उन्होने सचिव-पद से त्याग-पत्र दे दिया । निधन शिवली अपनी रचना 'सीरतुन्नवी' को व्यवस्थित करने में व्यस्त थे कि उन्हें अपने छोटे भाई मोहम्मद इस्हाक़, वकील इलाहाबाद हाईकोर्ट की बीमारी का समाचार লিলা | वे तुरंत इलाहाबाद पहुँचे। लेकिन कुछ ही दिन की बीमारी के बाद 15 अगस्त, 1914 को भाई की मृत्यु हो गयी। इस घटना ने उन्हें अत्यधिक तौर पर हताश और शोकाकुल कर दिया। वे हर तरफ़ से मुँह मोड़कर आज़मगढ़ चले आये । निश्चय था कि यहीं रहकर 'सीरत' के शेष भाग को पूरा करेंगे और साहित्य-रचना और संपादन के उद्देश्य से 'दारुल मुसन्नफ़ीन' तामक एक संस्था कौ स्थापना क रेंगे। इसकी आरंभिक कार्यवाही पूरी भी हो चुकी थी लेकिन नियति ने उनका यह्‌ स्वप्न साकार नहीं होने दिया ओर 18 नवम्बर, 1914 को उनका निधन हौ गया ।




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