गर्जन | Garjan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० गजन
हैं। सिमुक का काौशल काम कर गया, वह स्वयं सुरक्षित
बना रहा।
अन्तिओक महान् न हिन्दुकुश पारकर काबुल के हिन्दू राजा
सुभागसेन का हराया । परन्तु आगे बढ़ना कुछ आसान न था ।
अपनी महत्ता में कालिख लग जाने के भय से अन्तिओक
महान् अपनी सना पीछे छोड़ सीरिया की ओर लौट चला ।
परन्तु सेनापति अन्द्रोस्थीनि की अध्यक्षता में उसकी सेना
बाहीक आदि यवन राज्यों की अन्य सेनाओं के साथ मगध
की ओर बढ़ी |
शालिशूक माय का अभी अभी देहावसान हुआ था और
सेमशमा के दुबल करों में माौयों का राजदंड अस्थिर हिल रहा
था। यवनवाहिनी ने मथुरा और साकेत लॉधकर मगध की सीमा
में प्रवेश किया। स् आ ह अव ते का राजग्रह अब सेामशमों का'
पाटलिपुत्र था। अब पाटलिपुत्र में न॒ता सिल्यूकस का विजेता
चन्द्रगुप्त था और न उसका पथ-प्रद्शक चाणक्य। यवनों की
सेना का माग कहीं न रुका। सामशमों माय गारथगिरि की
ओर भागा और मगध-साम्राज्य की सेना पहलेसे ही बेद्ध दा
चुकी थी। संघ के प्रचुर प्रभाव ने मग ध का शौर्य पानी कर
दिया था। साम्राज्य की सेना ने हथियार डाल दिए। केवल
माौयों के पुरोहित-बंश का नवसेनापति कुछ समय तक यवनों
की अपार वाहिनी से लेाहा लेता रहा, “फेर पराजय अनिवाये
जान बोद्धों के कासता हुआ वह भी गंगा के पार उतर गया।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...