सप्त - सुमन | Sapt - Suman
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मन्दिर
ए
मातृ-प्रेम, तुमे অন্য ই! संसारम श्रोर जो कुछ दे, मि ध्या है, निरषार है ।
मातृ प्रेम ही सत्य है, अक्षय है अनश्वर है | तीन दिन से सुखिया के मुँह में श्रन्न
का न एक दाना गया था, न पानी की एक बूँद। सामने पुआल पर माता का
नन्हा-सा लाल पड़ा कराह रहा था । श्राज तीन दिन से उसने श्रखिं नदीं लोली
थीं । कभी उसे गोद में उटाजेती, कभी पुश्राल पर बुला देती । हंसते-खेलते
बालक को श्रुचानक क्या ह्य गया, यह कोई नहीं बताता था । ऐसी दशा में माता
को भूख ओर प्यास कर्शं! एक बार पानी का एक घुट मुँह में लिया था, पर
कण्ठ के नीचे न से जा सकी । इस दुखिया की विपत्ति का वार॒पार न था |
साल-भर के भीतर दो बालक गणकी गोद में सोंप चुकी थी। पतिदेव पहले
ही सिधार चुके थे। अब उस अभागिनी के जीवन का आधार, अवलम्ध जो
था यही बालक । हाय ! क्या ईश्वर इसे भी उसकी गोद से छीन क्ञेना चाहते
हैं? यह कल्पना करते ही माता की आँखों से कर-कर आँसू बदने लगते थे ।
इस बालक को वह एक क्षुण-भर के लिए भी अकेला न छोड़ती। उसे साथ
क्षेकर घास छीलने जाती। घास बेचने बाजार जाती तो बालक गोद में होता ।
उसके लिए उनसे एक नन्ही-सी खुरपी ओर नन््हीं सी खाँची बनवा दी थी। जिया-
बन माता के साथ घास छीलता ओर गव से कहता--अ्रम्माँ ! हमें भी बढ़ी-सी
खुरपी बनवा दो, हम बहुत-सी घास छीलेंगे। तुम द्वारे माची पर बैठी रहना
अम्माँ, मैं घास बेच लाऊँगा ! माँ पूछुती-हमारे लिए. क्या क्या लाझोगे,
बेटा ! जियावन लाल-लाल साड़ियों का वादा करता । श्रपने लिए, बहुत-सा गुड़
ज्ञाना चाहता था । वे दी भो्ली-मोली बातें इस सतय याद श्रा-ग्राकर माता के
इदय को श्रूलं के समान बेष रही थीं । जो बालक को देखता, यदी कहता-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...