शेषदान | Sheshadan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 जहाँ जीवन का निभ्त अतस्तल तात्कालिक समस्याओं के घरातल पर भी उदगत करना पढ़ा है वहाँ कहानियों वस्तुकथा भी बन गई हैं, केवल अतिम कहानी में ही नही, बल्कि “नग्न ज्वाला, 'जीवनका जुलूस', और 'बेवसी' म मी । इन कहानियो में युग-कथा तो है ही, युग-युग की व्यथा भी बोल रही है । क्छ कह्ानियोंमें मनोदन्त्त्यात्मकु क्षणोंकी चुस्त ड्रॉइग है, जेसे, (मारक कि तारक “', 'अनन्तकी डायरीसे', 'कहोंसे आरम्भ करें ४ 'किसका नेतृत्व ' म “प्यार कि सदार का राजनीतिक रूपान्तर है । वही समस्या-मूलक शौर श्रात्मयोगमूलक दृष्टिकोण इस मिन्न कथानकमें सत्षिप्त कद्दानीका चित्रपट पा गया है। दोनोंका निष्कषं एक-षा ही षाया- आही है--“मृत्युकी गोदमें जीवनका खेल खेलनेका यह साइस ही मुक्ति- पथकी साधना है ।?--( पृष्ठ ८० )। जीवनके सभी क्षेत्रोंमें वीरेन्द्रका दृष्टिकोण सचेतन है, उसमें यन्त्रवत्‌ निर्जीव अन्धानुकरण नदीं । ययपि जन-साधारणसे भिन्न द्ोकर वह किसी असाधारणताका दावा नहीं रखता, बल्कि जन-साधारणसे भी अधिक साधारण होकर लोकनाथकी तरद ही “सारी मानव-सुलभ दुबेलताश्रोके प्रति अपनेको खुला छोड़ कर चल रद्दा है। हर दुबेलताको अवसर है कि वह्‌ आये और उस पर अपना पजा बठाये । आदशेका कोई घिराव या बन्धन भी अपने आस-पास लेकर वह नहीं चलता। হাঁ, उसके भीतर जो लौ दै, उसके उजालेसे बचकर उसके जीवनमे कुछ भी नहीं गुज़्र सकता ।” भीतरकी उसी रोशनीमें वीरेन्द्र वत्तमान राजनीतिक प्रयत्नोंको भी देखता है । उसका यह मन्तव्य दष्टव्य है--““वह ( सब ) श्रस्वस्थ प्रतिक्रियासे उपजी हुईं क्षणिक उत्तेजना है, आवेश है .... ।“--( पृष्ठ १२८ )। ° आत्म परिणयः के बाद शेष दान' में वीरेन्द्रका धरातल विस्तृत हो गया है और इत धरातल पर नारीका आत्मदान बलिदान बन गया है। उसश्च आत्मदान मधुर था, उसका बलिदान प्रखर है--“उसके पेरोंमें




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