चंड - प्रतिज्ञा | Chand - Pratigya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
441 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सन्त गोकुलचन्द्र शास्त्री - Sant Gokul Chandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क
(४ )
इंसा--कद्दती हूं शत्रजराज । ( कुछ रूककर ) अभी कहती हूं, अपने
इष्टदेव के सामने दिलके भाव प्रकट न करूं, तो और किसके
आगे करूँ ? मन्दिरका प्रवेशद्वार तो उन्द् हीह, इस
पिछले द्वारको भी क्यों न बन्द कर दू ? (उठने लगती दै)
वही आवाज्ञ-( जरा क्रोचसे ) क्या तुभे हमारी शक्ति पर भी
सन्देह ই?
हंस--नहीं घनश्याम, यद्द कैसे द्वो सकता है: तुम्दारी शक्ति पर
सन्देह करना, संसार के प्रत्येक पदाथ, बल्कि समूचे संसार
के अस्तित्वपर ही सन्देह करना हैं ?
बह्दी आवाज्ञ-तो फिर यह द्वारका वन््द् करना किस लिए ?
इंसा--( कांपती हुई, द/थ जोड़कर ) त्तमा करो, सुकते भूल होगई है,
भयङ्कर भूल द्वो गई है, मैंने क्रिसी सन्दिग्ध भाव से यह नहीं
क॒द्दा था, यद्द तो केवल लज्जावश... ...
वह्दी आवाज्ञ-इन लज्जा-बज्जा की वातों को छोड़ो बेटी । वास्त-
নিচ্চ विपयपर आओ ।
दंसा--मैं यद्दी मांगती हूं, ( कुछ रुककर ) मैं यही मांगती हूं ( फिर
रुक जाती है ) मैं यद्दी वर मांगती हूं किसी रेते के पल्लेसे
बाँधी ( रुक जाती है ).........
वह्दी आवाज़--( डरा दँसकर ) वद्दी बात हुई न -€खोदा पद्दाड और
निकृली चुदिया ? यद् भो कोई लज्जा को बात है! जिस
व्यक्तिके द्वाथर्म जीवननैया की पतवार देकर इस भवसागरकी
लम्बी ओर विषम यात्राकों पार करना है, उसको अपने
अनुकूल प्राप्त करनेको इच्छा सदिच्छा है, स्वाभाविक है।
भला इस बातमें क्या लज्जा ? यद्द बात तो तुम अपनी
मावाको निःसंकोच कद सकती थीं ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...