कैद और उड़ान | Qaid Aur Udan

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Qaid Aur Udan by उपेन्द्र नाथ अश्क - UpendraNath Ashak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्याख्या समय, पता नहीं क्यो. मन चाहता है कि सूरज निकलने से कहीं पहले, नदी के नीलाभ-जल ঈ कमल के पत्तों जैसे बड़े-बड़े सुनहरी घेरे बनते -मिटते चले जाति । इधर सरज की पहली किरण ककती, उधर उस पीला मे ललाई दौड़ जाती । ऊपा के उस पवित्र वारे सौन्दयं मे, मे आपका कैद” की अभागी अपराजिता की मुरभये हुए कमल जेसी जिन्दगी से परिचय कराता, या बाँस के जंगलों पर तैरते हुए पूर्णमासी के पीले-पीले चाँद की छाया में घायल हिरणी की तरह तड़प कर चौकड़ी भरती हुई माया की कहानी आप से कहता । लेकिन मेरे कने का यह मतलब कदापि नहीं कि अश्क के ये दोनों पान्न, या उनको लेकर बुने गये ये दोनों नाटक . सिफं सतरंगी कल्पना से निर्मित. यथाथ से बहुत दूर, किसी परी-लोक के पात्र हैं और केवल उसी वातावरण में उनका परिचय मिल सकता है। ये दोनों नाटक हमारे जीवन को ही प्रतिफलित करते हैं। दोनों ही नाटकों मे पुरुष ओर नारी के सम्बन्धो को ` संयोजित करने वाली आदिम-प्रवृत्तियो के बहाव, अवरोध ओर परिष्कार का ही सांकेतिक चित्रण है । कैद? मे नारी बध गयी है । अपनी आतमा की मंजिल ओर अपने सपनों के देवता से दूर, पारिवारिक बन्धनों और सामाजिक रूढ़ियों में आबद्ध, बह चट्टानों १३




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