तलाक की प्रक्रिया में चल रहे दंपत्तियों के व्यक्तित्व समायोजन और संवेगात्मक परिपक्वता का एक अध्ययन | Talak Ki Prakriya Men Chal Rahe Dampattiyon Ke Vyaktitv Samayojan Aur Sanvegatmak Paripakvata Ka Ek Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
76 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)में इसप्रकार पारिवारिक त्याग कठिनता से ही पाया जाता है।
यदि विभिन्न समाजों के आँकड़े देखे जायें तो पता चलता है कि जिन.
समाजों में रोमांटिक प्रेम के द्वारा विवाह जितनी अधिक मात्रा में होते हैं, वहाँ
विवाह-विच्छेद की संख्या भी उतनी ही अधिक होती है ।
शिक्षा और औद्योगीकरण के कलाव भी विवाह के रूप में कई परिवर्तन
हुये हैं। अब कोई भी शिक्षित व्यक्ति विवाह को जन्म-जन्मान्तर का एक अदूट
बन्धनः नहीं समझता। आज जब कंभी भी पति-पत्नी के बीच सहयोग पूर्णतया
समाप्त हो जाता है तो विवाह-विच्छेद कर लेना अधार्मिक कार्य नहीं माना जाता
है ।
हमारे समाज में स्वतन्त्रता के बाद बनने वाले सामाजिक विधानों ने विवाह `
के रूप में महत्वपूर्ण परिवर्तन उत्पन्न किये हैं इन विधानों के कारण केवल एक
विवाह को ही मान्यता दी गयी । सामाजिक विधानों के सामने गोत्र, प्रवर या टोटम রি
. के प्रतिबन्धों का कोई महत्व नहीं है। এ
दिन्द्र विवाह का अर्थ ` এ
हिन्दु जीवन में विवाह एक धार्मिक संस्कार है जिसका एक मात्र उद्देश्य
व्यक्ति को अपने धार्मिक तथा सामाजिक कर्तव्यों को पूरा करने के अवसर प्रदान |
करना है। इसी के द्वारा धर्म, अर्थ, कामं ओर मोक्न जैसे पुरुषार्थो को पूरा किया वि
जाता है। द
डॉ० पाण्डेय को अनुसार | টি ক
हिन्दू विवाह एक धार्मिक तथा मानवीय संस्था है जिसका उद्देश्य दाम्पत्य
जीवन में संयत मार्ग का अनुसरण करना है!” । :
तैत्तिरीय ब्राह्मण में कहा गया है कि जो पुरुष विवाह नहीं करता उसे यज्ञ ५
1.
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