शिवानी के साहित्य में आदर्शवाद एवं नैतिक दर्शन का विश्लेषणात्मक अध्ययन | Shivani Ke Sahitya Mein Adarshvaad Avam Naetik Darshan Ka Vishleshnatmak Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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0 ओतरिक्त स्थातन्त्रयोत्तर हिन्दी साहित्यकासें की लम्बी परम्परा है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री, बाबू गुलाब राय, रामकृष्ण दास, वियोगी हरि, दिनेशनन्दिनी, उालमिख, जगन्नाथ प्रसाद शर्मा, गोविन्द बल्लभ पद. हरिकृष्ण प्रेमी, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र, विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक , सेट गोविन्द दास, उयक्षंकर भट्ट, लक्ष्मीनारायण मिश्र, वृन्दावन लाल वर्मा, सद्गुरु शरण अवस्थी, रामनरेश त्रिपाठी, रामवृक्ष बेनीपरी, रामकुमार वर्मा, जगदीश चन्द्र माधुर, विष्णु प्रभाकर, धर्मवीर भारती, प्रभाकर माचवे आदि अधिक श्राव्य है। इन्हीं साहेत्यकारों के अनुकम में जुड़ता है शिवानी का नाम। स्पातन्त्रयोत्तः हिन्दी साहित्यकार्सों की विशेष चर्चा डिनदी साहित्य की विधाओं के सन्दर्भ में विशेघतः देखी जा सकती है। জল. स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी साहित्य की विधायें और शिवानीः भारतीय साहित्य के ज्षेत्र में प्राचाना और आधुनिक दृष्टि से साहित्यिक विधाओं फहेँ एक ओर विविधता आई है तो दूसरी ओर साहित्यिक विधाओं के मानदण्ड হাল इहये 1 मूलतः साहित्य पद्यात्मक और गदात्मक दृष्टि से विभक्त किया जाता है। पद्यात्मक साहित्य में भारतीय काव्य शास्त्र की द्रष्ट से प्रबन्ध काव्य और मुक्तक काल्य की अवधारणा मिलती है। प्रबन्ध काव्य मँ महाकाव्य ओर खण्डकाव्य {नाम नाम से भेद किये गये क! मुकधक कल्य मँ गीत, प्रमीत, म॒क्तक आदि उपलव्ध ॐ! किन्तु आधुनिक युग की सशक्त तल्खिका शिवानी ने पद्यात्मक विधा में किचितमात्र भी अपने बुदिकीशल का जोहर नही दिघ्राया। अतः इन विधां का विस्तृत वर्णन विषयानुकूल नहीं होगा। यद्यपि साहित्य की पद्यात्पमक धारा में प्रबन्ध कान्य के अन्तर्गत महाकाव्य एवं खण्डकाव्य स्वीकृत है तथा प्रबन्धेतर काव्य के अन्तर्गत मुक्तक काव्य के माध्यम से गीत, प्रगीत, नवगीत, लोकगीत आदि काव्य विधां लोकानुस्जन का आधार बनती रही हैं फिर भी आर्धुनिक युग में पद्ध के समकक्ष आरम्भ हुये गद्य साहित्य मेँ प्य की अपेक्षा




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