धर्मसर्वस्वाधिकार तथा कस्तूरी प्रकरण | Daramsarvadikar Tatha Kasturiparkaran
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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हेमधेचुवरादीमां, दातारः खरुभा खवि ॥
दरुमः पुरूषो लोके) यः पाणिष्वभयप्रद्ः 1 ३२ ॥
अथै--सुव्णं, गाय, अने वरदाननां देनाराओ्रो तो
अआ पुथ्वीमां सुलन्न रोय ठे, पण जे माणस সাহসী
प्रते अज्नयदान आपे ठे, तेवो माणएस आ दुनीमरामां
उर्व ठे. ॥ ३३ ॥
सहतामाप दानाना, कालेन प्षायत्त फम्
प्तीताप्तयप्रदानस्य, धक्षय एव न विद्यते ॥ ३४
সঅ--লীভা হালা पण फर काते करीने कय पामे
ठ, पण वीता एवा प्राणीने अज्नयदान देवानुं जे फल
तेनो कयज घतो नथी. ॥३४ ॥
पथधासजमप्रयाघ्तत्यु: , सचषा प्राणना तथा प
तस्मास्सत्युमयन्स्ता, सातन्पाः पाणनोवुधेः ॥३५॥
-वर्छ दे युधिष्टर! एम विचारघुं के जेम मने
पोताने मृत्यु अप्रिय लगे उ, तेम सर्व प्राणीोने पण
ते अप्रिय लागे ठेःमाटे उद्या माणएसरोए सृत्यनां लयथी
ज्यज्ञीत थएला प्राणीओनु रक्तण करचुं. ॥ ३५ ॥
एकतः कतव; सव, सखमय्रवरद्क्षणाः 0
एकतो स्षयभोतस्प, प्राष्णनः पाणरक्तणम् ए २६ 1
अथे-द्ढी दे युचिष्टर ! एक वाजु सघला
वरदाननी दक्िणावाला स्वै यज्ञो अने बीजी तरफ
प्रयज्नीत घला प्राणीनां प्राणनुं रक्षण करद; (ते ,
वधर श्रेष्ट छे. ) ইজ
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