साहित्येतिहास सिद्धान्त एवं स्वरूप | Sahityetihaas Siddhant Evm Swaroop
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ साहित्येतिहास
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इस कथन पर पूर्णतया सहमत नहीं हुआ जा सकता कि साहित्य का इतिहास-
कार आलोचना ओर सिद्धांत से बचा रहता है, बिल्कुल मिथ्या है, आलोचना
एवं सिद्धांत का उतना ही पूरक रूप में महत्व स्वीकारा जा सकता है जितना
कि साहित्येतिहास के अध्ययन पक्ष को पूणं बनाये रखने के लिये सांस्कृतिक व
संमाजशास्त्रीय अध्ययन को । यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक हैः
साहित्येतिहास अध्ययन की विधा है और कृति अध्ययन के लिय वे गभी
मानविकी विषय की आवश्यकता हो सकती है जो मानव जीवन के अध्ययन
के लिये अनिवाय हो। নাহল एवं वेलेक के इस कथन पर मेरी आंशिक
सहमति है कि इतिहासकार बने रहने के लिये जरूरो है कि वह साथ ही
आलोचक भी हो ।
साहित्येतिहास और समसामयिक मुल्य
साहित्य-सूजन के मूल उत्स में कृतिकार अपनी समसामयिकता की भूमि
को ही आधार रूप देना चाहता है । साहित्येतिहास में दूसरे युगों' के मानदण्ड
स्वीकार करने होते हैं क्योंकि युग सापेक्ष्यता से कृति का जीवन सम्बद्ध होता
है| प्रश्न उठता है कि क्या साहिव्येतिहासकार को लेखक के युग के अतीत में
जाना चाहिये १ उन युगो कै मुल्य या प्रतिमान अथवा युग-जोवन के आंतरिक
स्त्रोतो से साहित्येतिहासकार को साक्षात्कार करना चाहिये ! इस हृष्टिकोण के
लिये इतना कहना पर्याप्त है कि साहित्येतिहास के अध्ययन-पक्ष में सांस्कृतिक एवं
राजनीतिक, सामाजिक इतिहासों के परिचय प्राप्त करने की अपेक्षा इस कारण
भी है ताकि साहित्येतिहासकार रचना-कृति के युग के मानव-जीवन की संवेदना
को रचना में प्रतिविम्बित हुआ, दिखाये । साहित्य का इतिहास लेखक भी अन्य
इतिहासकारों की भाँति पहले इतिहासकार हैं और बाद में साहित्य का
आलोचक, भाषाविद् अथवा पाठालोचक । क्रोबे साहित्येतिहास में सम
सामयिकता को ही प्रधान मानते हैं क्योंकि इतिहासकार के रूप मे वर्तमान
का स्वरूप हो उसके सम्मुख रहता है। लेसिंग का भी लगभग यही हृष्टिकोण
है कि साहित्येतिहासकार अपने युग से विगत की ओर जाने में असमर्थ होता
है इसलिये अपने लेखन में उसका अपना युग उसकी सीमा है। क्रोबे एवं
लेसिंग के मतों में समसामयिकता का अधिक आग्रह है, इसलिये समकालीन
मूल्यो कौ सीमा में साहित्येटिहासकार को अनुबद्ध कर दिया है, मेरा विचार
है कि साहित्य का इतिहासकार श्विगत युग में उस युग-विशेष की कृतियों के
माध्यम से जा सकता है। यही अंतह ष्टि का पक्ष साहित्येतिहास का अपना
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