विविध आचार्यों द्वारा व्यञ्जना - रक्षार्थ प्रयुक्त युक्तियों का आलोचनात्मक अध्ययन | Vividh Aacharyon Dvara Vyanjana - Raksharth Praktiyon Ka Aalochanatmak Adhyayan

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Book Image : विविध आचार्यों द्वारा व्यञ्जना - रक्षार्थ प्रयुक्त युक्तियों का आलोचनात्मक अध्ययन  - Vividh Aacharyon Dvara Vyanjana - Raksharth Praktiyon Ka Aalochanatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्य प्रस्थानों में लक्षणा का আহিল सिद्ध हों जानें पर काव्यशास्त्र में लक्षणा का जौ स्वस्य हैं, उसें यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है - लक्षणा शब्ब जक्ष धातु - युच्‌ प्रत्यय ~ पस्त्यं टाप्‌ करनं पट बनता हैँ | + वरिष्ठ ध्वनिवावी जाचार्य अमिनवगप्त के मनुस्तार - मृख्यार्थ बायावे सहकारियों की अपेक्षा से अर्थ की प्रतीति कराने वालीं शॉक्त लक्षणा है - मुचख्यार्थ बाधाविस्सह्कार्येपैक्षा प्रतिमासनशाक्तर्लक्षणा शक्ति) | 2 अभिनवग॒प्स से पहले यति हम पफमलंकार-शास्त में लक्षणा की स्थिति वेखना चाहें तो वहाँ मी लक्षणा के स्पष्ट संकेत मिलते हैं । उदम्भट ने सपक के प्रसंग में गुणवस्ति का उल्लस किया है । 3 आचार्य वामन तो লঙ্গাকিল কী प्लाटश्यप्म्बन्धरूपा लक्षणा दही मानते टै । ~ आचार्य म्रम्मट ने काव्य-प्रकाश मेँ लक्षणा का निस्पण इम्त प्रकार किया हैं - | ” प्ुष्व्यार्धनाष्ये त्योग सदितोडय प्रयोजनात्‌ 'मन्योडर्थों लक्ष्यों यत्‌ লা लक्षणारोपिता क्रिया “ ।> 1. लक्षणाशब्बश्च सलन्नभयातोर्यचप्रत्यये হিসআাভানি सिद्धयति~-न्यायकोाशः | पु. 599 2. ध्व. लोचन. प्र उ- पृ. 9 3... शब्वानाममिधानममिषा व्यापारों मुख्त्यों गुणवत्तिश्व । ' काव्यालकारसारसंग्रह - + 44 4... प्रलाहृश्याल्लक्षणा वक्रॉक्तिः | क्‍ - का. प्र. वु. - 4 |3 |8 5 . काव्य प्रकाशश्च ~ न्ितीय उल्लास - पृ. 54




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