दिवाकर दिव्य ज्योति भाग 16 | Divakar Divya Jyoti Bhag 16

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Divakar Divya Jyoti Bhag 16  by चोथमलजी महाराज - Chothmalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तियरगति की यातनाएं ] [६ ই | उसके पेर बाँध देते है ओर फिर उसके शरीर पर लकड़ियों से नियता पू्ैक प्रहार करते है । मारते-मारते जब पांडे की चमड़ी खूब सूक जाती है, तब उसे मार डालते है श्रोर उस चमड़े को शरीर पर से उतांर कर त्तत्काल ही नगाड़े पर मढ़ देते हैं । तब कही बह नगाड़ा बोनता हैं ! इस प्रकार नगाड़ों के लिए भी पचेन्द्रिय जीवों की घात होती है। इस कारण बहुत-से मन्दियों में तो नगाड़े बजाना बद कर दिया याया हैं । एक आदसी ने नगाड़े की जोड़ी बनवाई | उसके लिए कितने पाड़े मारे गये, यह सब हाल बनाने वाते चे सुमे वतलाया था। बनवाने वाले का नाम भी सुमे याद्‌ है, परन्तु उसे प्रकट करने की आवश्यकता नहीं | यह हमारे ससार के ही गाँव की बात दहै किन्तु जो बात एक गाँव मे है, वह अन्यत्र भो हे । भाइयो ! आप लोग कीड़ियों की दया पालने वाले है,किन्तु आप नही जानते कि दिन-रातं आपके कॉम में आने वाली चीजों के लिए हजारो पचेन्द्रिय जानवरों की हिसा हो रही है । यह चमड़े की मुलायम चीजें केसे बनती हैं ? गर्भवती गाड़र के पेट में जोर से लाते मारी जाती है | लात के आघात से गाड़र का गंभ गिर जाता द शौर गभं के चसे से सुलायम सनीवेग ( बढुए ) आदि- श्नादि चीजे तैयार होती है | कहिए, कितनी घोर हिंसा है? इस हिंसा को दयावान्‌ श्रावक कभी सहन कर सकता है १ आप यह न सोच ले कि हम अपने हाथ से हिंसा नहीं करते अतएव हमें उस हिंसा का भागी नहीं बनना पड़ता । ऐसा सम- আলা अपने को धोखा देना है.। जो लोग ऐसी. हिसामग् बस्तुओं




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