भारतीय इतिहास कोश | Bhartiya Itihaas Kosh
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
183.33 MB
कुल पष्ठ :
532
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सच्चिदानंद भट्टाचार्य - Sachchidand bhattachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ढँ
तक श्रपना राज्य स्थापित कर लिया था। १६७४ई० में
औरंगजेब खुद पेशावर गया तथा कूटनीति श्रौर शस्त्र-बल-
से उसने श्रकमल खाँ तथा पठानोंको हरा दिया ।
अकाल-भारतके श्राधिक जीवनकी एक दुःखद विशेषता ।
मेगस्थनीज (दे०) ने लिखा है कि भारतमें अ्रकाल नहीं
पड़ता, लेकिन यह कथन बादके इतिहासमें सही नहीं
सिद्ध होता । सच तो यह है कि भारत जेंसे देशमें मुख्यतः
खेती ही जीवन-यापनका साधन है. श्रौर वह मुख्यतः
अ्रनिश्चित मानसूनी वर्षापर निर्भर रहती है । भ्रंत: यहाँ
अकाल प्राय: -पड़ता रहता है । ब्रिटिश राज्यकालके
पहलेके झ्रकालोंका ' विश्वस्त विवरण नहीं प्राप्त होता ।
लेकिन १७४५७ ई० की पलासीकी लड़ाई भ्रौर १९४७ ई०
में भारतकी स्वाधीनता मिलनेके समयके बीच, अर्थात्
. १४६० वर्षकी छोटी झ्ंवधिके दौरान देशमें बड़े-बड़े नौ
श्रकाल पड़े । यथा
(१) १७६४-७० ई०, जिसमें बंगाल, बिहार श्रौर
उड़ीसाकी एक तिहाई श्राबादी नष्ट हो गयी । (२) १८३७-
३८ ई० में समस्त उत्तरी भारत अकालग्रस्त हुआ, जिसमें
८ लाख व्यक्ति मौतके शिकार हुए। (३) १८६१ ई० में
पुन: भारी श्रकाल पड़ा, जिसमें उत्तर भारतमें अ्रसंख्य
व्यक्ति मरे । (४) १८६६ ई० में उड़ीसामें अकाल पड़ा,
जिसमें १० लाख लोगोंकी जानें गयीं । (४) १८६८-
६९ ई० में राजपूताना श्रौर बुंदेलखंड श्रकालके शिकार
' हुए। इसमें कम झ्रादमी मरे, फिर भी यह संख्या एक लाखसे
कम नहीं थी । (६) १८७३-७४ ई० में बंगाल और बिहार-
में पुन: भ्रकाल पड़ा, जिसमें लोग भारी संख्यामें मरे ।
(७) १८७६-७८ ई० का झरकाल तो समस्त भारतमें पडा
जिसके फलस्वरूप श्रकेले ब्रिटिश भारतमें ५० लाख व्यक्ति
मरे । (८) १८९६६-१९०० ई० में दक्षिणी, मध्य श्र
उत्तरी भारतमें शभ्रकाल पड़ा जिसमें साढ़े सात लाख
व्यक्ति सरे। (९) १४४३ ई० में ब्रिटिश सरकारकी
“सर्वेक्षार' नीति, व्यापारियोंकी धनलिप्सात्मक जमाखोरी
तथा प्रशासनिक शभ्रष्टाचारके कारण बंगालमें श्रकाल
पड़ा, जिसमें लगभग १४ लाख व्यक्ति मरे।
अकाल आयोग-१८८० ई० में वाइसराय ला लिटन द्वारा
सर रिचडे स्ट्रैचीकी भ्रध्यक्षतामें स्थापित । इसी श्रायोग-
की सिफारिशपर “श्रकाल संहिता की रचना की गयी थी ।
१८९७ ई० में वाइसराय लाडे एलगिनने सर जेम्स लायल-
की शध्यक्षतामें पुनः एक श्रकाल ायोगकी स्थापना की ।
द्वितीय झ्रायोगने प्रथम आयोग द्वारा निर्धारित सिद्धान्तों-
का समर्थन किया श्ौर श्रकाल सहायता योजनाके विस्तृत
अकाल-अकाल प्रतिवेदस
कार्यान्वयनमें परिवतन कर दिया । १६००४ ई० में वाइस
राय लाड कर्जनने सर एण्टोनी मेंकडानलका श्रध्यक्षतामें
तृतीय अकाल श्रायोगकी स्थापना की । इसने भी प्रथम
आयोगके सिद्धान्तोंका समर्थन किया आर यह सिफारिश
की कि सहायता कार्यवाले क्षेत्रके लिए सहायता-श्रायुक्त
नियुक्त किया जाय तथा दूरस्थ क्षेत्रोंगें केन्द्रकी श्रोरसे
कामकी व्यवस्था करनेकी अ्रपेक्षा सावजसिक हितके
स्थानीय कार्योमें अकालपीड़ितोंको लगाकर वस्तु-बित्तरण
किया जाय । यह भी सिफारिश की गयी कि श्रकाल
सहायता कार्यमें गैर-सरकारी संस्थाग्रोंका श्रधिकाधिक
सहयोग लिया जाय, कृषि बेंक खोले जायें, खेंतीके विक-
सित तरीके भ्रपनाये जाये भ्रौर सिंचाई सुविधाशोंका
विस्तार किया जाय । इन सिफारिशोंको स्वीकार किया
गया श्र सरकारने उनपर झ्रमल किया ।
अकाल भ्रप्तिबंदन (१८८०६० )-सर रिच स्टरचीकी झ्रध्य-
क्षतामें नियुक्त प्रकाल झायोगद्वारा प्रस्तुत ।. प्रतिवेदनमें
सर्वेप्रथम यह मौलिक सिद्धान्त निर्धारित किया गया कि
प्रकालके समय पीड़ितोंकों सहायता देना सरकारका
कतंव्य है । इस सिद्धान्तके अनसार काम करने योग्य
व्यक्तियोंको काम देकर सहायता पहुंचाना तथा कमजोर
अर बूढ़े लोगोंको अन्न एवं धनसे सहायता देना उचित
बताया गया । यह भी कहा गया कि सहायताके रूपमें
जो काम कराया जाय, वह स्थायी हो श्रोर इतना बड़ा हे
कि उक्त क्षेत्रके सभी जरूरतमंद लोगोंकी श्रावश्यकताकी
पूर्ति हो सके ।. बड़ी योजनाश्रॉपर काम करने हेतु टूर
भेजनेके लिए जो लोग योग्य न हों, उन्हें त्तालाबोंकी
खुदाई श्रथवा पुलिया श्रादि बनानेके. स्थानीय काममें
लगाया जाय ।. सहायताके रूपमें दिया. जानेवाला काम
तत्काल श्रायोजित किया जाय श्रौर भखम रीसे शबित घटने-
के पहले ही श्रकालपीड़ितोंकों काम श्रौर श्रन्न प्राप्त हो
जाय । लगान स्थगित अ्रथवा माफ करके बीज एवं कृषि-
यन्त्र खरीदनेके लिए शभ्रम्चिम धन देकर श्रकालपीडितोंकी
ग्रतिरिक्त एवं सामान्य सहायता की जाय । सहायता-
वस्तुकी छीजन तथा फिजूल-खर्ची रोकनेके लिए सहायता-
व्ययका मुख्य भार श्रकाल पीड़ित क्षेत्रकी स्थानीय सरकार-
को उठाना चाहिए श्र केन्द्रीय सरकार केवल स्थानीय
स्रोतोंगें योगदान देनेका काम करे । सहायताका वितरण
गर-सरकारी प्रतिनिधि संस्थाश्रोंके माध्यमसे हो । प्रति-
वंदनमें यह भी सिफारिश की गयी कि श्रकाल सहायता एवं
बीमाकोषकी स्थापनाके लिए प्रतिवर्ष डेढ़ करोड रुपया
अलग कर दिया जाया करे जिससे श्रकालके समय
श्रावश्यकता पड़सेपर धन लिया जा सके |
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