प्रबन्ध - पुर्णिमा | Prabandh - Purnima
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अम्बिकाप्रसाद गुप्त - Ambika Prasad Gupta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घरित्रअथल और विवाह।
न
धः के सभी हितेषियौ को इस वात से अवश्य
द् ९५ कि इस समय भारतवर्ष में व्यक्ति
गत और राष्ट्रीय दानो प्रकार का चरित्रवल्ल
इतना कम दे कि हम लोग अपनी निजी
इश्नति श्रथवा जातीय उद्धार के लिये सफलता की शासे
कार्य नहीं कर सकते । इस सम्बन्ध में चरित्र शब्द से में उन
गुणौ का निदेश नहीं करता जिनसे सदाचार, विनय, सत्यता,
दानशीलता, अदिसा आदि का बोध हो । इस प्रकार के गुण
तो एक तरद से बहुत हैं। चरित्र से दमारा अर्थ यह भी नीं
है कि स््री पुरुष के कामसम्बन्ध में पवित्रता हो। यद्द भी
अपने देश में अ्रन्य देशों से अधिक नहीं तो कम भी नहीं है ।
चरित्र बल से हमारा अर्थ यह है कि हम लोगों को अपने कर्म
में ततपरता और रढ़ता दो, हम लोगों में वद शक्ति दो जिसके
कारण हम अपने २ कार्यों को किसी सीमा तक पहुँचा सके ।
चरित्र से हमारा झर्थ उस आत्मवल से हे जिसकी सहायता
से हम झपते २ काय विशेष में तन, मन, धन से लगे रहते
हैं और इसका विचार नदीं करते कि ओर लोग क्या करते है?
भायः यह देखने मे आता है हम लोग अपना कार्य थोड़ा
भी विरोध होने पर छोड़ देते हें। यदि किसी ने कुछ भी
हमारी हँसी की या अन्य बाधा के उपस्कित होने पर निरु-
त्सादी हुए, तो हम लोग अपना मन उस कायं से हटा लेते
हैं। यदि किसी अंश में भी विफल हुए तो दम पीछे हट जाते
हैं। इन्हीं सब कारयों से हमारी सावंजनिक अथवा ब्यक्ति-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...