वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सांख्य दर्शन और उसके शैक्षिक निहितार्थों का समालोचनात्मक अध्ययन | Bartman Pariprachaya May Sankhaya Darasan Ayur Uske Shaikshik nihitarthon Ka Samlochnatmaak Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संग्राहक दर्शन ही है। सुप्रसिद्ध दार्शनिक भगवान दास ने भी लिखा है “दर्शन शास्त्र, आत्म विद्या, आध्यात्मिक विद्या, आन्वीक्षिकी, सब शास्त्रों का शास्त्र, सब विद्याओं का प्रदीप, सब व्यावहारिक सत्कर्मो का उपाय. है 1“ भारतीय दर्शन परमसुख का मार्गं बताया है दुख की जिज्ञासा एवं सुख की लिप्सा ने दर्शन को जन्म दिया है वर्तमान मेँ भी सदा की तरह ही मानवीय स्वभाव के अनुरूप व्यक्ति सुख चाहता है। दुख क्या है? सुख क्या है ? इससे मुक्ति के उपाय क्या है ? परमसुख कैसे प्राप्त हो सकता है 2 आदि । डा. भगवान दास ने अपनी पुस्तक दर्शन के प्रयोजन मे लिखा है-- यद्‌ आभ्युदायिकं चैव नैश्रयसिकमेव च | सुखं साध्यितु मार्ग दर्शयेत तद्धि दर्शनम्‌ || सांसारिक और पारमार्थिक दोनों सुखों के साधन का मार्ग जो दिखाए वही सच्चा दर्शन ই ৮০৮: রর वर्तमान में भारतीय दर्शन की उपादेयता यह भी है कि आज जीवन- मूल्य बदल रहें है, नये मूल्य विकसित हो रहे है। दर्शन की यह विशेषता हे कि मनुष्य की मूल चेतना के अनुरूप वह भी नये रूप धारण कर लेता हे। दर्शन में जीवन से संबंधित सभी तत्वों का... समावेश है इसलिये दर्शन बदलते समय के अनुरूप बहुत कुछ प्रदान कर सकता हे! इस संबंध में एक उदाहरण दिया जा सकता है कि जैसे प्रत्येक युग में बदलती हुई संवेदना के अनुसार साहित्य का भी निर्माण हो जाता है वैसे ही दर्शन भी वर्तमान स्थितियों के अनुरूप चिन्तन | : प्रस्तुत कर सकता है, दिशा-निर्देश दे सकता है, मार्ग बता सकता है। दर्शनों का प्रमुख कार्य मूल्यो का अनुचिन्तन भी है। इस दृष्टिकोण को सामने रखते हये दर्शनो का प्रमुख कार्य मूल्यो ` का अनुचिन्तन भी है। इस दृष्टिकोण को सामने रखते हुये दर्शनों का अध्यापन किया जये तो परिस्थितियों के अनुरूप जीवन सिद्धान्त खोज निकाले जा सकते है। भारतीय दर्शनों की यह भी उपादेयता है कि ये दर्शन प्रत्येक विषय म तकयुक्त व प्रामाणित तथ्य प्रस्तुत करते है विश्व के समस्त दर्शनों में जितने भी मतमतान्तरदहैवेकिसीन किसी रूप मेँ भारतीय दर्शन मे उपलब्ध है ओर व्यवित्त उनका उपयुक्त हल पा सकता हे | यह भारतीय दर्शनों की बहुत बड़ी विशेषता है। भारतीय दर्शनो का महत्व इसलिए भी है कि. भारतीय दर्शन प्रगतिशील है! जब एक सिद्ान्त आया तो कुछ समय वाद उसके प्रतिवादी पक्ष




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