भारतीय सशस्त्र सेनाओं के परिवर्तित नैतिक एवं व्यावसायिक मूल्यों का अध्ययन | Bharatiy Sashastra Senaon Ke Parivartit Naitik Evam Vyavasayik Mulyon Ka Adhyayan

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Bharatiy Sashastra Senaon Ke Parivartit Naitik Evam Vyavasayik Mulyon Ka Adhyayan  by अरुण सिंह - Arun Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यदि हमारे पास यथेष्ठ चरित्र न हो तो हमारी शक्तियों की अपेक्षा दुर्बलतायें ही अधिक प्रभावी होगी, हमारे सौभाग्य की तुलना में दुर्भाग्य ही अधिक प्रबल होगा, हमारे जीवन में सुख-शान्ति की जगह शोक-विषाद की ही बहुतायत होगी और हमारे भविष्य की तुलना में हमारा अतीत ही अधिक गौरवशाली होगा। यदि हमारे पास यथेष्ठ चरित्र न हो तो हमारे मित्रों की अपेक्षा शत्रु ही अधिक सबल होगे, शान्ति की तुलना में युद्ध ही अधिक होंगे, मेल-मिलाप के स्थान पर हिंसा का ही आधिक्य होगा | परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। यह निरंतर चलता रहता है। लेकिन कभी-कभी परिवर्तन सदियों से मान्य नैतिक मूल्यों में ही होने लगता है तब सम्पूर्ण सामाजिक परिवेश अव्यवस्थित होने लगता है ऐसे ही परिवर्तन को श्रीमद्भागवत गीता में निम्न प्रकार कहा गया है- यद्ध यद्ध हि धरस्य ग्लानिर्भवति भात ८ अध्युत्थानमृथमव्य तव्हत्मानं सुज्यम्यहम: परित्राण रना হিজহেহে ভ दु्छताम ८ धग्ब्टस्थापनार्थाय्‌ रम्भवामि युगे ये ८ जब धर्म की हानि होती है ओर अधर्म बढता है तब मे अपने को प्रकट करता हूँ तथा सज्जन पुरूषों की रक्षा करते हुये दुष्टों का संहार करता हूँ और पुनः धर्म की अच्छी तरह स्थापना करता हूँ। महाभारत का युद्ध तत्कालीन सेनानायकों के नैतिक हास के कारण हुआ था, जिसके सूत्राधार दुर्योधन और शकुनि थे। दुर्योधन को समझाने का प्रयास श्रीकृष्ण ने किया था लेकिन उसके अनैतिक कार्य इतने बढ़ चुके थे परिणामतः सारा राज्य एवं राजवंश नष्ट हो गया।




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