स्त्री और पुरुष | stree Or Purush

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stree Or Purush by महात्मा टालस्टाय - Mahatma Tolstoyश्री बैजनाथ महोदय - Shri Baijnath Mahoday

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महात्मा टालस्टाय - Mahatma Tolstoy

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श्री बैजनाथ महोदय - Shri Baijnath Mahoday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्त्री और पुरुष फल यद ना ६ कि समाज के युवक, युवतियाँ जीवन के घसंतकाल शी से भीषण रोग फे शिकार होने लग जाती हैँ । यह अत्यन्त दुः्म फो षात है । इसमे हमें क्या शिक्षा लेनी चादिये ? यद्दी कि, मलुप्यों के धरुथों का पालन-पोपण पश्नु फे यचो फी तरह करना हानिकर है। शिशु-मंबर्धन फे समय थब्चे के मोटे ताजे भौर सुडौल बनाने की अपेक्ता दूसरी यातों फी ओर हमें विशप ध्यान देना चाहिये । যত घोधी यात पाँचवें हमारे समाज में युदक और युवतियों का आपस में प्रेम फरना मानव-भीवन फी सर्वोच्च फाव्यमय महत्वाकांत्ता समभी जाती दै1 ( खरा दमारे समाज फी फला ओर कान्य की शरोर दृष्टिपात गरे देख लीजिए ) युवक खतंत्र प्रेम-विवाद फे लिए किसी योग्य युवती को ढूँढने में और लड़कियाँ तथा लियो पेसे पुरुषों को अपने भ्रेम-पाशों में फंसाने मे अपने जीवन का दिया से यढ़िया दिस्सा योह वरवाद्‌ कर देते ट । इस देश के पुरुषों की सर्वश्रेष्ठ शक्तियाँ ऐसे फाम में खचे हो जाती हैँ जो म फेबल निररथक बल्कि द्वानिकर भी हैं। इसी के फारण हमारे जीवन में इतनी मूट़ बिलासिता बढ़ती जा रद्दी है। इसी के कारण पुरुषों में आलत्थ और खित्यों में निर्बलता बदूती जाती है। कुलीन स््रियाँ नीच बुलटाओं की देखादेखी नित्य नई फैशनें सीखदी जाती हैं. और पुरुषों के चित्त मे काम खी आग को भड़काने वाले अपने अंगों का प्रदर्शन करने में हरा भी नहीं लजातीं । १५




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