ऋद्धि | Ridhi

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Ridhi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय 2 तत्परता, शिक्षा, शान, शिएता, सच्चरित्रता भर धमोच्ररण से जे दैदिक, मानसिक ग्रेर आध्यात्मिक उन्नति होती है, सक्षेपता इन्हीं उन्नतियों का नाम ऋद्ध है। यदि कहा जाय कि--अम्नुक गोव फी भ्रीघरुद्धि नहों । ते इससे यह समझना चाहिए कि उसे मच के रहनेवारे अपन्ययो, अरपरिश्रमी, द्रव्यदीन, असी, दण्डि शरीर हीन दद्या में प्राप्त हैं। ऐसे अधनतिदशील रामबास আহা ग्राश अज्ञानता के कारण प्रायः गाँव के स्वास्थ्य ग्रार सफाई पर ঘ্যান नहीं देते । वें छोग ज्यर, विसूचिका आदि 'अनेक रोगों से अर्मरित हेकर অই दुःखे सरे समय विताते ই , ओर अपने साता, पिता, सन्‍्तान ग्रार पड़ासियें की सहायता करने में ग्रसमथ हेते है । क्रितने ही ता रागाक्रान्त हाकर अल्प ' अयस्या में हो सेसार से चल बसते हे । ये छोग देंहिक प्रार मानसिक হাতি से रहिन हाने के कारण अनेक यानना सह कर | भी अपने दुःख का कारण नहों सोचते च्रीर न उसके प्रतीकार | काके प्रयक्ष ही फरते हैँ। थे छोग जैसे अपने साहस के 1 - द्वारा वर्तमान अवस्या से उद्धार पाने का कोई उपाय नहों करते ¢ पैसे ही भविष्य के लिए, धक्त्‌ वे-पक्त्‌ के लिप, कुछ संचय भी 1, नदों करते । इसका कारण उनकी अज्ञानता न्नर दरिद्रता है। % थे लोग द्वव्य प्राप्त क्रते भो ह ता उसे श्रपव्यय के कारण वया |. नष्टो सकते । वे बहुधा विरासप्रिय हवे ই चोर पेटपूना को ‡ -ही सवोपरि मान्ते द सो से जो कुर धन पैदा करते हं उसै ५ ~ ~ 9.9 1 १५




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