श्री जम्बू स्वामी चरित्र | Shri Jambu Sawami Charitra

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Shri Jambu Sawami Charitra by श्रीमान ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Shriman Bramhchari Seetalprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋुस्थामी चरित्र हैं। सर्व ही मोगभूमिवासी रोग रहित, मलमूत्र नीहार रदित, বাঘা रहित व खेद रहित होते हैं । उनके शरीरमें पश्तीना नहीं होता है व उनको कोई आजीविका नहीं इनी पडती है तथा वे पूणे मुदे भोगनेवाले होते है । वहांकी स्लियोंक्री ऊंचाई व भायु पुरुषोंके समान होती है ! जैसे फल्यवृक्षम्ें करपवेढ भासक्त होती हैं इमी तरह ने अपने नियत पुरुषों अनुराग रखनेबाली होती हैं । जन्म परत दोनों प्रेमसे भोग संपदाको भोगते हैं. सवे भोगभूमिवासी हवगेके देवोंढ समान सवमाव मुच्दा होते हैं। उनको वाणी ह्वमावसे मधुर होती है, ह१४ी चेष्टा स्वभावत ही सुन्दर होती है । वहां प्रथ्वी+!यक दश जातिके कर गृक्ष थोते दे । उनसे वे मोगभू मवासी इच्छ नुकू » भाहार, घर, বাহিল। মাজা পাদ্গগা। অত আছি मोगक्की भा-ग्री प्राप्त कर हेते हैं। कह्पवृक्षोके प्ते सदा ही मेद मन सर्गषत इवि हिते रहते दे | कतरे সমান व क्षेत्रकी सामध्येस ये নুহ प्रगट ढोत हैं , कक्‍्यों।क इनमे पृण्णवान मानवोंक! मनके भनुसार रुचिकर भाग प्राप्त होते है। हथलिय इनको विद्वनोंन $ रपवृक्ष कहा 8 । इनक) जन] दश प्रकी होत है । (१, माग (२) वाजि- त्रॉंग (३) भूषणाग (४) पुष्पमालांग (५) ज्यो'त्ततंग (६) दीपांग (७) गृहांग ८) भोजनांग (९) पात्रांग (१०) वच्चांग जैसे इनके नाम हैं वे ही वतु प्रकट कानेमे ये एरिणमन 97> ह | भोग- भूमिषरापी इन शरःकृकोते शाह मोगोको मपने पुण्रे उदवते লা ४




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