नई तालीम- | Nai Talim-
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
605
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धार्मिक उदारता
अपने देश में अनेक पर्म हैं। यह सम्भव है कि जो जिसका पर्म है, उसे वह
माने कि हमारा धर्म सबसे अच्छा है। पर्तु साव-साथ दूसरे धर्मों के प्रति वह
आदर रखे, यह दो अवश्य ही होना चाहिए। यह एप सत्य हैं मानवोय जीवन के
हिए। सभी घ॒र्मो मे कुछ-न-कुछ तत्त्व हैं। कोई धर्म ऐसा नहीं है थो दावा कर
सकता है कि साण तत्त्व हमारे ही पास है | इस प्रक्ञार से हम अपने धम का पालन
करें और हमे लये कि किसी धर्म मे कोई बच्छाई है, कोई सत्य है, तो हम उसे
प्रहण भी करें । इससे हम कोई विवर्मी बत जाते हैं, ऐसा नही है । हमारे पर्म मे
जो प्राण या, जो शक्ति थी, जो तेज था, वह आाज नही है, बाहर वा ऊपरी रूप
है, कर्मकाएड है, दिखावा है । नहीं तो हमारे ये हरिजन भाई कस प्रकार से रह
रहे हैं? आज आठ करोड़ की सख्या है उनरी । समाज में उनकी क्या दशा है?
आज हिन्दू धर्म के नाम से जो धर्म प्रचलित है उसके अन्दर उनका स्थान
নহী है । आदिवासी हैं, ये भी दूर हैं हमसे । ईसाई मिशनवाले किस प्रकार से
इनका यर्मान््तर कर रहे हैं ? वह कोई धर्म समयाकृर कर रहे हैं एसी बात नहीं
है। हिन्दू घर्म अपनी संकीर्णता के कारण अपना ही नुकसान कर रहा है। थे सब
पूते ६ ® हिन्दू बनेंगे दो कहाँ रखिएगा आप २ हम बौद होते हैं, ईसाई होते हैं,
मुसलमान होते हैं तब तो! बराबरों के दर्ज पर आते हैं। यह घोड़ा विपपाग्तर
हुआ। लेकिन जानबूशकर यह विपयान्तर इसलिए किया कि जो दुर्वश्ता हमारे
अन्दर आयी है, उसका परिणाम होता है कि हम अपने का) दुसरों से अचाते वे
लिए जातिअषा के नाम पर, छुआछूत के नाम पर, खाठपाल के नाम पर एक
दीदार खड़ी कर लेते हैं और उसके अन्दर हम पैर लेते हैं अपने को ।
लोकता त्रिक आस्था
जह् चकं लोकतत्र बी बात है, उसके एक-एक मुद्दे को लेकर के सोचना
होगा हमें कि लोकठत्र को ঘুষ करने के लिए तदथ कया कर सकते हैं। तरणो की
নী पार्टों होगी चुनाय छदने के लिए, उनको कोई अलग हुकूमत होगी, कोई
शासन खडा शिया जायेगा, तव छोर तंत्र पुट होगा या तरणों को अमुक पार्टी में
भरती होना होगा, क्या करना होगा ? यह समझने को जरूरत है। आज तो
वर्तमान जो परित्यिति है अपने देश की, और खासकर बिहार की, यह समस्या
बहुत महत्व वो हो गयी है । सब ”६७ के बाद से अपने देश में जो लोकतंत्र है
उसकी नौका विज्ुल डॉवाडोल है । कब डूब जायेगी, कहना मुश्किल है | इस
हालत मे अगर यह सन्देह पेदा हो कि इस अतित्य और जो ছুটি है, खतरे
अगस्म, ६८६ ] [1
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